4/29/24

भूल जाओ कोई नाम है (कविता):- साक्षी रॉय

    भूल जाओ कोई नाम है (कविता):- साक्षी रॉय   

साहित्य आजकल से आज के अंक में आप पढ़ेंगे समस्तीपुर बिहार की साक्षी रॉय की जाती धर्म संप्रदाय पर केंद्रित स्वरचित रचना। पढ़ें व अपने तमाम लोगों तक अवश्य साझा करें।

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भूल जाओ कोई नाम है (कविता):- साक्षी रॉय

 हिंदू मुस्लिम से लड़ाई क्यों

जाति में इतनी कड़वाहट क्यों

भूल जाओ कोई नाम है

खाना तो नहीं,

फिर इतनी लालसा क्यों ।।

हिंदू के लिए गलत है मुस्लिम

मुस्लिम के लिए गलत है हिंदू

महान विचारकों महान लोगों को,

पढ़ते हो किताबें में

उसमें भी तो होते हैं 

कोई मुस्लिम कोई हिन्दू

उनका तुम सत्कार करोगे

असल जिंदगी में ईर्ष्या करोगे।।

नकारात्मक सोच को बाहर निकालो,

अपना जीवन खुशहाल बनाओ,

ना कोई हिन्दू ना कोई मुस्लिम

हम है एक भविष्य जो लाएंगे

एकता में शक्ति का नाम।।

          रचनाकार:- साक्षी रॉय

         (समस्तीपुर, बिहार)


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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)




           ‌

3/30/24

कुछ नहीं हूं (कविता):- कमल दिक्षित

कुछ नहीं हूं (कविता):- कमल दिक्षित 
जिंदगी पर आधारित राजस्थान के कमल दिक्षित द्वारा रचित बेहतरीन कविता को जरूर पढ़ें और अपने लोगों तक साझा करें।।

     कुछ नहीं हूं:- कमल दिक्षित    

 संंजोय विचारों से बहुत कुछ हूं

     फिर भी कुछ नहीं हूं,

लिखने के सपने देखू पर केसे, 

कम्बक्त नकारात्मकता ने सोने ही नहीं दिया।

मन का सुरज ,,, विचारों की तपन 

इतनी की शब्दों से लोहा पिघाल दू।

सोच नेक रही सदेव मन में 

कोई कहे बेबसी अपनी तो 

नि, शवार्थ भाव से से निकाल दूं ।


गांव की डगर पर चलकर बसर ज़िन्दगी 

पर संस्कारों से तो लबरेज हो गये।

पथ पकड़ी शहर की तो मालुम हुआ

कि सपने तो सब खो गये। 

पथ भ्रष्टाचारीयों ने हमारी ही दशा से 

अपनी अपनी स्वार्थ की दिशा बदल ली। 

और मेरे विचारों को दीन हीन‌‌ दशा में डाल दिया।

उभरते भी कैसे पर फिर भी

उस दशा में भी जिने का हुनर निकाल लिया।

 

घर औरों के जलाकर 

ख़ुद के चूल्हे में अग्नि प्रज्वलित 

करने वालों की तो चांदी सी चल रही है।

आज के दोर में लजा संस्कारी और 

संज्ञान से चलने वालों के घरों में 

बेरोज़गारी की आंधी चल‌ रही है।

सिर्फ आत्म विश्वास की ऊर्जा से

रोशनी दिख रहीं है। याद करता हूं 

उस दौर को लगता है इन्सानियत तो 

बेबसी में बिक रही है।

     रचनाकार:- कमल दिक्षित 

गेलासर तह,,मकराना डीडवाना।

              (राजस्थान )

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)




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दिव्य ज्योति तेरी माता जलती रहे :- सोना शर्मा

"दिव्य ज्योति तेरी माता जलती रहे"(भक्ति सॉन्ग) :- सोना शर्मा
देवी मां पर सोना शर्मा द्वारा रचित बेहतरीन भक्ति सॉन्ग को जरूर पढ़ें और अपने लोगों तक साझा करें।।

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      शीर्षक:- दिव्य ज्योति      

दिव्य ज्योति तेरी माता जलती रहे 

सुख का सागर धरा पर यूं बहती रहे।।


बिना मांगे जो देती सब कुछ अनमोल वरदान तेरा

देवों ने भी पूजा तुम्हे करे स्वर्ग लोक गुणगान तेरा।


दिव्य ज्योति तेरी माता जलती रहे

सुख का सागर धरा पर यूं बहती रहे।।


तुम्ही मां दुर्गा कहलाती

तुम्ही कहलाती महाकाली,

तेरे शरण जो आए मईया

ना जाए तेरे दर से खाली।

गऊ भजन तेरी सुमिरन करूं


दिव्य ज्योति तेरी माता जलती रहे

सुख का सागर धरा पर यूं बहती रहे।।


सोना शर्मा

समस्तीपुर, बिहार

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

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3/1/24

साहित्यकार सदैव विद्यार्थी होता है- प्रो.शरद नारायण खरे

अपने गीत गज़लों के माध्यम से डॉ शरद नारायण खरे आम पाठको के हृदय में रचने बसने में सक्षम हैं - सिद्धेश्वर

    ' साहित्यकार सदैव विद्यार्थी होता है' -  प्रो.शरद नारायण खरे

           पटना ! आज के व्यस्ततम समय में एवं लिखी जा रही बोझिल कविताओं के दौड़ में, यदि किसी की लयात्मक कविताएँ आपके  हृदय को छू ले , तो यह उस समकालीन कवि की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी l ऐसे में लयात्मक कविताओं के धनी वरिष्ठ कवि डॉ शरद नारायण खरे, कवियों की श्रेणी में अग्रणी नज़र आते हैंl उन्होंने इस कार्यक्रम के दौरान एक दर्जन के करीब गीत- गजलों का पाठ भी किया l एक तरफ उनकी कविताएँ देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थी तो दूसरी तरफ उनकी गज़लें जीवन के कटु यथार्थ को लिए हृदय में चुभन का एहसास करा रही थी l कहने का तात्पर्य यह कि  डॉ शरद नारायण खरे अपने गीत- गज़ल के माध्यम से आम पाठको के हृदय में रचने बेसने का सामर्थ्य रखते हैं l              

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              भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के तत्वधान में , यूट्यूब के पेज पर सिद्धेश्वर जी ने ' ऑनलाइन  अवसर साहित्य पाठशाला' के 28 वें एपिसोड  के अवसर पर ' हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने कहा कि कविता, कहानी,गज़ल   आदि किसी भी विधा में रचना की बात करें और लेखक या कवियों की चर्चा करें तो प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध, राहुल सांकृत्यायन आदि को लेखक बनने के लिए  किसी विश्वविद्यालय में जाकर  डिग्री लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी l सतत साहित्य का अध्ययन और सृजन ही उन्हें महान लेखक के रूप में स्थापित किया l

" हमारे इस एपिसोड से बहुत सारे नए रचनाकार, सृजनात्मक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं l" आज की कविता पाठशाला में छंद में लिखी जारी कविताओं पर विशेष चर्चा की गई तथा मुख्य अतिथि डॉ शरद नारायण खरे से एक छोटी सी भेंट वार्ता भी ली गई l और ऐसे सवाल सिद्धेश्वर ने पूछे कि नए कवियों को छँद कविताएं लिखने में मदद मिल सके l

          सुप्रसिद्ध रचनाकार व संपादक सिद्धेश्वर जी से अपने इस ऑनलाइन कार्यक्रम में लंबी बातचीत करते हुए मंडला(मप्र)के कवि-लेखक प्रो.शरद नारायण खरे ने बताया कि वर्तमान में साहित्य तो बहुतेरा लिखा जा रहा है,पर अधिकांश निरर्थक व साहित्य के मापदंडों के बाहर का है।उनकी मान्यता है कि चाहे छंदबद्ध या मुक्तछंद में रचा जाए पर वह गुणपूर्ण होना चाहिए।कथ्य, लय, प्रवाह,बिम्ब के अभाव में सपाटबयानी वाली कविता को कविता मानना ही बेमानी है।वे कहते हैं कि आज के कवि/लेखक पढ़ने व सीखने की प्रवृत्ति से दूर हो गए हैं।वे दस-बीस कविताएँ लिखकर व कुछ डिजीटल सम्मान पत्र पाकर ही स्वयं को महान रचनाकार मानने के भुलावे में खोये हैं।जबकि सीखने से ही बेहतरी आती है।वैसे भी कवि/लेखक सदा विद्यार्थी होता है,उसे निरंतर सीखना चाहिए,तभी उसकी रचनाओं में स्तर का समावेश हो सकेगाl प्रो.शरद नारायण खरे ने न केवल दोहों,गीतों ,छंदों के विधानों पर चर्चा की बल्कि अपने दोहों,गीतों व ग़ज़लों के माध्यम से मात्रा-गणना करना व लय को पकड़कर दोषमुक्त रचना लिखना भी बताया।

             मुख्यातिथि के रूप में शामिल प्रो.शरद नारायण खरे,जो मूलत: इतिहास के प्रोफेसर व वर्तमान में मध्यप्रदेश में डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल हैं,नेअन्य रचनाकारों की कविताओं का मनोयोग से न केवल श्रवण किया,बल्कि उन पर सार्थक टिप्पणियाँ भी कीं।

            इस ऑनलाइन सम्मेलन के दूसरे सत्र में हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन आयोजित की गई जिसमें एक दर्जन कवियों ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया l इन कवियों में प्रमुख थे सर्व श्री एकलव्य केसरी ,डॉ पूनम श्रेयसी, डॉ सुधा पांडे , पुष्प रंजन आदि l

         इनके अतिरिक्त  सपना चंद्रा, , संतोष मालवीय, नमिता सिंह,  इंदू उपाध्याय, योगराज प्रभाकर, रजनी श्रीवास्तव अनंता, माधुरी जैन, बीना गुप्ता, राज प्रिया रानी,डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना,विजया कुमार विजय आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और चर्चा में भाग लिया

[] प्रस्तुति : बीना गुप्ता [ जनसंपर्क अधिकारी : भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, ]पटना! 

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1/18/24

हिम्मत न हार.. (ग़ज़ल)- सुल्तान अली

 हिम्मत न हार.. ग़ज़लकार  -{सुल्तान अली} 

           


हौसला रख मुश्किलों का सामना भी कर जायेंगे 

ये जो दौर है इस दौर से भी इक दिन गुज़र जायेंगे 


वो अपनेपन की मिसाल देकर फिर ज़ख़्म दे गया 

मगर ये ज़ख़्म भी उन ज़ख़्मों की तरह भर जायेंगे 


अनजान शहर में गाँव की याद सताती है अक्सर 

मिले फ़ुर्सत इस भाग दौड़ से तो अपने घर जायेंगे 


मैंने ख़ुद को बचाकर रखा इस ज़माने की बदल से 

हिम्मत न हार मैदान में आए हैं तो जीतकर जायेंगे 


ये कश्ती ज़िंदगी की साहिल पर आएगी 'सुल्तान'

हिम्मत रख उफनती लहरों को भी पार कर जायेंग

  सुल्तान अली 

 शिक्षक ( उत्तरप्रदेश) 

   अलीगढ़ - 202002

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12/23/23

पूर्णियां विश्विद्यालय गणित विभाग के छात्रों ने कार्यक्रम आयोजित कर मनाया गणित दिवस

 पूर्णियां विश्विद्यालय गणित विभाग के छात्रों ने कार्यक्रम आयोजित कर मनाया गणित दिवस।

पूर्णियां विश्विद्यालय सह पूर्णियां कॉलेज पूर्णियां के स्नाकोत्तर गणित विभाग के छात्रों द्वारा संयुक्त रूप से गणित दिवस के अवसर पर महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत सर्वप्रथम श्री निवास रामानुजन के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित कर हुई। मंच संचालन हरे कृष्ण प्रकाश कर रहे थे।

          कार्यक्रम में गणित विभागाध्यक्ष डॉ अश्वनी कुमार मिश्रा, सी सी डी सी डॉ एस एन सुमन, डॉ किसलय किशोर, प्रो संजय कुमार उपस्थित रहे। कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ अश्वनी कुमार मिश्रा कहा कि श्री निवास रामानुजन महान गणितज्ञ थे। इनकी उपलब्धियों को हमें अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। वहीं विश्विद्यालय सी सी डी सी डॉ एस एन सुमन ने छात्रों से रामानुजन से जुड़ी महत्वपूर्ण तथ्यों को साझा किया साथ ही रामानुजन नंबर के महत्व से छात्रों को रूबरू कराया। वहीं प्रो किसलय किशोर व संजय कुमार ने संयुक्त रूप से छात्रों को रामानुजन के जीवन से सिख लेते हुए खुद में आत्मसात कर आगे बढ़ने को कहा। 

वहीं छात्र रवि कुमार ने गणित के शब्दों से बने काव्य "रेखाओं में घिची हुई है, मेरी उम्र तमाम" प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के अंत में छात्र हरे कृष्ण प्रकाश ने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़ी कविता "अल्हर सी इस दुनियां में, रहते हैं कई लोग..." प्रस्तुति दी। छात्रों ने जमकर बजाई तालियां। कार्यक्रम में गणित विभाग के सैकड़ों छात्र छात्राएं शामिल हुए।


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12/3/23

सफलता के शिखर (प्रेरणादायक कविता):- सलमान सूर्य

 शीर्षक :- सफलता के शिखर (प्रेरणादायक कविता):- सलमान सूर्य


  सफलता के शिखर (प्रेरणादायक कविता):- सलमान सूर्य. 

हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी ।


तुझे सफलता के शिखर तक पहुंचना है अभी,

तुझे परिश्रम करना है अति।


धैर्य रख हिम्मत से काम ले,

क्योंकि सफलता की सीढ़ी चढ़ना अभी।


हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी।


समय का एक-एक क्षण है अनमोल तेरे लिए,

समय कमान से निकले तीर की तरह कभी वापस न आता।


समय की कीमत को जो पहचान लेता,

मंज़िल तक वही है,पहुंच पाता।


हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी।


मुश्किलों का सामना करते हुए आगे बढ़ता रहा कर।

सदा प्रयास करता रहा कर,


भयभीत न हो, निराश न हो जीवन में कभी,

बस! सत्य के पथ पर सदा चलता रहा कर।


हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी।

✍🏻 कवि - सलमान सूर्य

       बागपत,उत्तर प्रदेश


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11/12/23

 पतिव्रता:- 

कमला का हर दूसरे तीसरे दिन हमारे घर आ जाना पिता जी को न सुहाता था न ही मुझे। पिता जी को अच्छा न लगने का कारण था कमला का बदनाम शराबी पति । मुझे कमला का आना इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी आती , जो भगवान जाने क्यों हमारे घर आते ही अपनी मां से खाना मांगने लगती, और उसे ऐसे जिद्द करता देख मां मुझे उसके लिए रोटी बनाने रसोईघर रवाना कर देती । कमला जब तक घर में होती, तब तक कभी वो तो कभी उसकी बेटी मां से कुछ न कुछ फरमाइश करते ही रहते।


कमला की उम्र पैंतीस साल से अधिक न होगी। दुबला पतला सा शरीर , रूखे बाल और चेहरे की झुर्रियां उसे उसकी उम्र से बीस - पच्चीस साल बड़ा दिखाती थीं। कमला का घर हमारे घर के पास ही था ,साथ लगती गली में। वह सारा दिन लोगों के घरों में घूम घूम कर औरतों का घर के काम में हाथ बटा देती और उसके बदले कभी कोई खाने की चीज या अपने बच्चों के लिए कपड़े ,बच्चों के स्कूल के पुराने बस्ते या जूते मांग लेती । घर जाकर फिर काम में जुट जाती । कभी कच्चे आंगन की लीपा पोती करती तो कभी घर के बाकी काम । कमला की दो बेटियां और एक छोटा बेटा था । बेटियों को घर के काम में हाथ बटाते किसी ने कभी देखा नहीं। सारा दिन लोगों के घरों में काम केतना ,कुछ न कुछ मांग कर घर लाना ,अपने घर का काम और रात को शराबी पति से मार खाना ,यही उसकी दिनचर्या थी।फिर भी लोगों के सामने बेशर्मों की तरह हंसती रहती थी।

उसका पति छिन्दा हमेशा से निठल्ला नहीं था। वह वन विभाग के एक बड़े अधिकारी के घर बावर्ची था ।वहीं कमला उससे मिली थी। तब इसकी उम्र कोई सोलह सत्रह साल रही होगी। एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली कमला को न जाने इस छिंदे ने क्या वायदे किए कि यह उसके साथ यहां भाग आई। छिन्दे की मां ने खुशी खुशी उसे अपनाया और तब से यह यहीं है । इसके मायके वालों ने कमला से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे ,बाकी किसी रिश्तेदार ने भी कभी इसे फिर मुंह नहीं लगाया । छिंदा वहां से तो काम छोड़ आया पर उसके बाद इसे एक डॉक्टर के घर काम मिल गया था । घर खर्च जैसे तैसे चल रहा था पर इसका मन कमला से कहां भरने वाला था । अपने ही गांव की एक औरत के साथ इसके नाजायज संबंध थे । अपनी ज्यादातर कमाई उसी के हवाले कर देता । उसी से रोज़ मिलने की हवस में नौकरी छोड़कर घर बैठ गया । तब से छिन्दा सारा दिन शराब पीकर घर  आराम फरमाता है और कमला पति प्रेम की पट्टी अपनी आखों पर बांध कर लोगों के घर काम करके इसे और तीन बच्चों को पाल रही है।

जब भी कमला हमारे घर आती तो मैं बहुत चिढ़ती। उसे चुगली करने की आदत हमेशा से थी । शायद इसी लिए औरतें उसे अपने पास बैठा लेती थी । औरतों को भी दूसरे घर की बातों में हमेशा ही दिलचस्पी होती है और यह भी यहां की वहां करने में लगी रहती । घर घर जाकर ऐसे अस्थाई शरण से गुजारा करना मुश्किल था इसलिए उसने कुछ बड़े घरों में पक्का काम पकड़ने की कोशिश तो बहुत की, पर इसकी बात ना बनी। इसका कारण भी इसका पति ही था । यह दो तीन दिन जिस भी घर में काम कर लेती ,इसका पति वहीं पैसे मांगने पहुंच जाता। लोग महीने से पहले तनख्वाह देने से मना करते,तो यह गाली गलोच पर उतर आता ।कई बार गांव की औरतें कमला को कहती - " क्यों री,कब तक अपनी देह तोड़ेगी, उस ब्रह्मराक्षस को बोल ,कोई काम करे।"

कमला बात काटते कह देती -" यह तो करना चाहते हैं काकी,पर शरीर साथ भी तो दे,बहुत कमजोर हैं और कुछ लोगों ने इनके पैसे मार रखे हैं जैसे ही पैसे वापिस मिलेंगे यह अपना कारोबार शुरू कर लेंगे "। 

भगवान जाने यह झूठ कमला खुद लोगों से बोलती थी या इसके पति ने ऐसे सुरखाब के सपने इसे सचमुच दिखा रखे थे जिनके पूरा होने की आस में यह रात दिन मरती थी ।

एक दिन सुबह सुबह कमला हमारे घर आई और मां के सामने रोने लगी कि उसके बच्चे कल से भूखे हैं। मां ने पिता जी से छिपाकर उसे थोड़ा सा आटा और बनी हुई तरकारी दे दी। मैं तब बरामदे में बैठ कर खाना खा रही थी तो सहानुभूति वश उसे खाने के लिए पूछा पर उसने मुस्कुरा कर मना कर दिया । इस इंकार की उम्मीद मुझे कमला से नहीं थी। उसके जाने पर मां ने बताया कि जब तक कमला अपने पति को नहीं खिला देती तब तक यह अन्न का दाना मुंह तक भी नहीं लाती । मुझे यह सुनकर कमला और उसके पति दोनों पर ही गुस्सा आया । छिन्दा लगभग चालीस साल का हट्टा कट्टा पुरूष था जो अपने काले वर्ण की वजह से सचमुच किसी दैत्य से कम न लगता था और जीर्ण कंकाल जैसी दिखने वाली कमला ने उसे भगवान का दर्जा दे रखा था। 

मैं कमला की शारीरिक रूप रेखा और हमेशा औरतों से चिपके रहने की आदत के कारण कई बार उसकी पीठ पीछे छिपकली कह कर बुलाती थी । कई दिन से मैंने कमला को हमारे घर के चक्कर काटते नहीं देखा था तो मां से पूछ लिया -" मां, यह छिपकली कहीं चली गई है क्या ? कई दिन से दिखी नहीं।" मां ने बताया कि बहुत हाथ पैर जोड़ने पर उसे सरपंच के घर पक्का काम मिल गया है। अब वो दिन का ज्यादातर समय वहीं होती है । उनका घर साफ करती है और रसोई में मदद करवाती है । वहां से पक्की तनख्वाह लग गई है और साथ ही रोज़ बचा हुआ बहुत खाना भी मिल जाता है । एक दिन मां ने कुछ काम से कमला को बुलवाया पर उसने बहाना बना दिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं। इसपर मां ने चिढ़कर कहा -" सब पता है मुझे कौन सी तबीयत ढीली है इसकी , जब मांगना होता था तो हमारी दहलीज नहीं छोड़ती थी और अब काम मिल गया तो बुलाने पर भी नहीं आती। लोग सच ही कहते हैं इसके बारे , यह अपने माई बाप की नहीं हुई तो किसी और की क्या होगी।" उस दिन के बाद मां ने किसी काम के लिए कमला को नहीं बुलवाया । एक दो बार वह खुद आई पर मां ने उसे नजरंदाज कर दिया।

मां की कमला को लेकर बेरुखी ज्यादा दिन नहीं चली। एक दिन पता चला कि कमला के पति ने उससे शराब पीने के लिए पैसे मांगे । पैसे न मिलने पर उसने कमला को काफी मारा पीटा और फिर पैसे मांगने सरपंच के घर चला गया । घर पर उस समय केवल सरपंच की पत्नी और बहू थीं। उन्होंने पैसे देने से यह कहकर इंकार कर दिया कि महीना पूरा होने से पहले वे तनख्वाह नहीं देंगी और वैसे भी कमला राशन के लिए कुछ पैसे पहले ही ले चुकी है। सरपंच की पत्नी ने उससे कहा - " तुम वैसे भी  पैसे शराब और औरतबाजी में ही खर्च करोगे ।" कमला ने कभी उसके आगे जुबान नही खोली थी इसलिए किसी औरत से बात सुनने की उसे आदत नहीं थी। गुस्से में आकर उसने सरपंच की पत्नी पर हाथ उठा दिया । अचानक हुए आक्रमण से वह खुद को संभाल ना पाई और नीचे गिर पड़ी जिससे उसका सिर दरवाज़े से टकरा गया और खून निकलना शुरू हो गया । छिन्दा तो वहां से घर भाग आया पर सरपंच ने जाकर अपनी पत्नी को अस्पताल दाखिल करवा कर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवा दी। गिरफ्तारी के डर से कमला के पति ने कमला का सिर खुद ही फाड़ दिया और बहते खून के साथ कमला को लेकर कोतवाली जा पहुंचा। वहां जाकर झूठी कहानी गढ़ी कि सरपंच की औरत ने गुस्से में कमला का सिर फोड़ दिया और बीच बचाव में ही सरपंच की पत्नी घायल हुई है । सरपंच ने अपना पलड़ा कमज़ोर होता देखकर समझौते की बात की ।लोगों ने भी उसे सलाह दी कि कोतवाली से बात निपटाना ही सही है ,छिन्दा और कमला तो गांव में ही रहेंगे । इनका जीना तुम वहां हराम कर देना । दोनों तरफ से समझौता कर लिया गया । छिन्दा खुश था ।वह गलती करके भी आसानी से जो छूट गया था।

इस घटना के बाद कमला का जीवन और मुश्किल हो चुका था ।उसे कोई अपने घर काम पर नहीं रखता था । उसका शरीर पहले ही बहुत कमजोर था और अब चोट लगने के कारण उसका बहुत सारा खून बह चुका था । डाॅक्टर ने कुछ और दिन अस्पताल में रहने को कहा पर छिन्दा उसे यह कहकर घर ले आया कि खाने का इंतजाम कौन करेगा । कमला खेतों में काम करने लायक नहीं रही थी । कुछ दिन लोगों के घर जा जाकर अपनी पट्टियों का हवाला देकर लोगों की सहानुभूति इक्कठा करती रही और घर चलाती रही । पर उसके निठल्ले पति के कारण यह तरीका ज्यादा दिन काम न आया । अब उसने लोगों के खेतों में काम करना शुरू कर दिया था । कमला को उम्मीद थी उसके जीवन में भी कभी न कभी अच्छे दिन आयेंगे। उसके पति का कारोबार होगा,उसकी बेटियां पढ़ लिखकर अफसर बनेंगी फिर उसकी पूरी ऐश होगी । यही सोचकर वह बेटियों को घर के काम में हाथ बटाने को न कहती थी । सोचती थी जब अच्छे दिन आयेंगे तो वह पूरा आराम करेगी।

एक दिन मां पिता जी किसी संबंधी के यहां गए थे ।मुझे मां कह गई कि हलवाई की दुकान से अपने लिए कुछ मंगवा लेना , अकेली क्या रसोई पकाना । मैंने गली के एक बच्चे को समोसे लेने दुकान की और भेजा । मां का कहीं जाना मेरे लिए ऐसे ही दावत का मौका होता है । मैं दरवाजे के पास आकर उस बच्चे के वापिस आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि तभी मैंने गली में कमला और उसके पति को देखा । कमला कहीं से मांग कर चूल्हे के लिए लकड़ियां ला रही थी और उसका पति आगे आगे चल रहा था । अचानक लकड़ियों की गठरी कमला के सिर से गिर गई , यह देखकर कमला के पति ने एक लकड़ी उठाई और उसे जानवरों की तरह मारना शुरू कर दिया। मार कर जब उसका जी भर गया तो छिन्दा कमला को उसी हालत में छोड़कर घर चला गया । मैं दरवाजे की ओट से यह सारा भयावह नजारा देख रही थी।कमला लकड़ियों को दोबारा सिर पर रखने की कोशिश कर रही थी कि तभी मैं उसके पास गई और बिखरी हुई लकड़ियां समेट कर उसकी ओर बढ़ा दीं। कमला की आखों से अचानक आसूंओं की मानो बाढ़ सी उमड़ आई और वह लकड़ियां लेकर घर चली गई । मैं वहीं खड़ी स्थिति को भांप रही थी । कमला मेरे सामने अपमानित होने के कारण नहीं रोई, उसके रोने का कारण कुछ और था । सारी उम्र वह लोगों के सामने अपने पति की जिस आदर्श छवि को प्रस्तुत करती आई थी , वह मेरे आगे टूट कर चूर हो चुकी थी।

कमला को उस दिन मैंने आखिरी बार देखा । कुछ दिन बाद कमला की बड़ी बेटी मां से कुछ पैसे मांगने आई । कमला के बारे में पूछने पर उसने बताया कि मां बहुत बीमार है और अस्पताल में है। यह सुनकर पिता जी ने कुछ पैसे उसे दे दिए और मां को बच्चों के लिए खाना देने को भी कहा। कमला बीमार तो लंबे समय से थी ,पर शायद अब उसका शरीर जवाब दे रहा था। 

छिन्दा इस मौके को जाने नहीं देना चाहता था । वह घर घर जाकर लोगों से कमला के इलाज के लिए पैसे मांगने लग गया । जो पैसे मिलते उससे वह शराब पी लेता और बच्चे लोगों के से घर मांग कर अपना गुजारा कर ही लेते । पर मांगने का यह क्रम भी कितने ही दिन चलता और कुछ लोग यह कहकर मना कर देते थे कि "कमला तो सरकारी अस्पताल में भर्ती है ,वहां के लिए  काहे को इतने पैसे चाहिए?" इसका तोड़ भी कमला के पति ने निकल लिया। वह हर हाल में पैसे ऐंठने का ऐसा अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसने कमला को दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया और लोगों से यह कहकर पैसे मांगने लग गया कि " बहुत बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया है , बहुत खर्च आता है रोज का । आप सहायता कर दीजिए , मैं और मेरा परिवार आपके यहां मेहनत मजदूरी करके सब चुका देंगे।"

सबको पता तो था कि ये कभी पैसे वापिस नहीं करेगा परंतु इंसानियत की खातिर कई लोगों ने इस परिवार की जितना हो सकता था , मदद की। गांव के कुछ शक्की मिजाज के लोगों ने पैसे देने से पहले डॉक्टर से बात करने की शर्त रखी तो डॉक्टर से बात भी करवाई गई । डॉक्टर ने बस इतना कहा -" मरीज का अच्छे से इलाज करवाया जाए तो यह ठीक हो जायेगा पर भविष्य में इससे मेहनत मजदूरी की उम्मीद नहीं की जा सकती। "

एक रात लगभग एक बजे अचानक मां की नींद किसी गाड़ी के हॉर्न से खुल गई । उन्होंने पिता जी को उठाया और देखने बाहर भेजा । साथ वाले कमरे में मेरी नींद भी खुल चुकी थी और मैं मां के पास आ गई । पिता जी ने वापिस आकर बताया कि एंबुलेंस गली में खड़ी है और कुछ अंजान लोग कमला के घर की ओर जा रहे हैं ।मां को अनहोनी का आभास हो गया । मां के बार बार कहने पर पिता जी कमला के घर की ओर गए । वापिस आकर उन्होंने बताया कि कमला की मृत्यु हो चुकी है और किसी गैर सरकारी संगठन की एंबुलेंस मृतक देह को छोड़ने आई थी । यह सुनकर मां की आखों से झर झर आंसू बहने लगे। मां ने उसी समय बच्चों का सोचकर कमला के घर जाना चाहा ,पर पिता जी ने बताया कि वे खुद वहां रुकना चाहते थे पर कमला के पति ने उन्हें वापिस भेज दिया। मां कमला के पति की बेवकूफी को कोस रही थी कि इस समय तो बच्चों को सहारे की कितनी जरूरत होगी ,पर कमला के पति के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था । कमला की लाश को बच्चों के हवाले कर वह रात को ही गांव के प्रतिष्ठित घरों में गया और यह कहकर पैसे ऐंठ लाया कि घर के बाहर एंबुलेंस खड़ी है और एंबुलेंस वाले बिना पैसे चुकता किए लाश नहीं दे रहे। 

अगले दिन कमला के मायके वालों को संदेश भेजा गया । मौत की खबर सुनकर मायके वाले भी सारे शिकवे छोड़ कर अपने आखिरी फर्ज अदा करने आ पहुंचे । कमला के मायके वालों ने विधि पूर्वक उसका अंतिम संस्कार करवाया । अपने नाती पोतों को बुरी हालत में देख कर कमला के पिता और भाई बहुत सा अनाज और पैसे भी दे गए और के गए कि बच्चे किसी के आगे हाथ न फैलाएं,जो कुछ चाहिए हो ,हमसे मांग लिया जाए । 

कुछ ही दिनों में कमला के घर की हालत सुधर गई । कमला के मायके वाले तो खुले हाथों से उन पर लूटा ही रहे थे ,गांव वालों ने भी बच्चों पर तरस खा कर जो जितना दे सका,दिया । सारा दिन मेहनत करके भी जैसी जिंदगी कमल अपने बच्चों को न दे सकी,वह उसकी मौत ने दिला दी । बच्चों के नाना ने कमला के पति को अच्छी नौकरी भी दिलवा दी ,जिसे वह कुछ महीने बाद ही छोड़ आया। गांव के कुछ लोगों का यह तक दावा था कि कमला बीमारी से नहीं मरी, छिन्दा उसके अंग बेचने के लिए ही बड़े शहर ले गया था ,और उसने वही किया भी । कमला को आखिरी स्नान करवाने वाली औरतों ने भी उसके शरीर पर जगह जगह टांकों के होने की बात की ,जो इस दावे पर मोहर की तरह थी ,पर किसी के पास कोई सबूत न था तो इस बात को मनघड़त ही मान लिया गया । 

स्नातक के बाद कुछ वर्ष आगे की पढ़ाई जारी रखने मैं घर से दूर रही। कमला का ख्याल भी मेरे मन में कभी नहीं आया । एक दिन मैंने यों ही मां से कमला के परिवार का हाल पूछा तो मां ने लंबी सांस लेकर कहा - " छिन्दा एक अधेड़ उम्र के आदमी से पैसे लेकर बड़ी बेटी का ब्याह उससे कर चुका है और अब तो वह खुद अपने लिए दुल्हन की तलाश में है ।"

मैंने हंसकर कहा- " लेकिन अब यह ब्रह्मराक्षस कमला जैसी कहां से लायेगा?" 

मां बोली -" पर उसे कमला जैसी नहीं चाहिए अब , वो कहता है कि अब किसी पतिव्रता से ब्याह करेगा जो घर के अंदर रहकर उसकी सेवा करे , कमला जैसी नहीं, कि सारा दिन लोगों के घरों में घूमती फिरे।" 



10/30/23

वो दस साल पुराना चेहरा (कविता):-मयूरी एस चवान

           वो दस साल पुराना चेहरा (कविता):-मयूरी एस चवान


वो दस साल पुराना चेहरा,

अब भी याद है मुझे, 

तुम से की गई,

हर बात याद है मुझे,

इंतजार में हर रोज,

करता रह गया तुम्हारा, 

पर कोई खत अब तक न आया तुम्हारा, 

जिसमें तेरी खुशी न हो, 

वो खता न कभी मैं करूं,

दुआ है मेरी मिल जाए मुझे

तू इस जनम में, गर

न मिले तो इस जहां को 

अलविदा मैं कहूं,

एक तेरे ही लिए तो

जी रहें हैं हम, 

हर रोज इन गिरते आँसूओ को

पी रहे हैं हम,

वो दस साल पुराना चेहरा,

अब भी याद है मुझे, 

तुम से की गई,

हर बात याद है मुझे...!

नाम - मयूरी एस चवान

पता - गुलबर्गा, करनाटका 

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






 

भाभा के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय काव्यांजलि

 भाभा के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय काव्यांजलि

भारत के प्रमुख वैज्ञानिक, ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी, भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर श्रद्धांजलि स्वरूप डॉ. भीखी प्रसाद "वीरेंद्र" की अध्यक्षता एवं संस्थापक महासचिव डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद के संचालन में "अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगम" (साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था) के तत्वावधान में 29 अक्टूबर, रविवार को सायं 4 बजे से गूगल मीट के माध्यम से एक ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. डॉ. ब्रज नंदन किशोर, पूर्व विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, भारत एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में प्रो. डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग, क्वांगतोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन, श्री विनोद कुमार दुबे, सिंगापुर, डॉ. ऋतु शर्मा, नीदरलैंड, शिखा

रस्तोगी, थाइलैंड, श्री शांति प्रकाश उपाध्याय, सिंगापुर, श्री सुरेश पांडेय, स्वीडन एवं ईश्वर करुण, आबुधाबी उपस्थित थे।

सबसे पहले मुजफ्फरपुर से उपस्थित श्री महेश ठाकुर ने उद्घाटन गीत प्रस्तुत किया। उसके बाद मुख्य अतिथि ने भाभा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला एवं काव्यपाठ के अंत में सभी रचनाकारों पर उनके द्वारा एक संक्षिप्त टिप्पणी भी प्रस्तुत की गयी।

इस अवसर पर देश- विदेश के कवि एवं कवयित्रियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर भाभा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। जिनमें प्रमुख रूप से जय प्रकाश अग्रवाल, नेपाल, डॉ. विपिन किशोर प्रसाद, डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति, कानपुर, अर्चना आर्याणी, सीवान,  विद्युत प्रभा चतुर्वेदी 'मंजु', डॉ. अलका अरोड़ा, देहरादून, शारदा प्रसाद दुबे, 'शरतचंद्र' थाणे, मुंबई,

भावना सिंह, (भावनार्जुन) अलीगढ़, देवी प्रसाद पांडेय, अन्नपूर्णा मालवीय, प्रयागराज, शैल मिश्रा, कोलकाता, ईश्वरचंद्र जायसवाल, संत कबीर नगर, यूपी, सुखदेव शर्मा, बदायूं, इंदु उपाध्याय पटना, नीरज सिंह, सीवान एवं संतोष साह, दुर्गापुर

आदि के नाम शामिल हैं। अंत में डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, सिलीगुड़ी ने सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।

यह पूरा कार्यक्रम बेंगलुरू से कंप्यूटर इंजीनियर अभिषेक प्रसाद द्वारा "गूगल मीट" के साथ-साथ "यूट्यूब" एवं "फेसबुक" पर लाइव प्रसारित किया जा रहा था ,जिसके माध्यम से दूर-दूर के श्रोता एवं दर्शक जुड़े हुए थे।

प्रस्तुति_दुर्गेश मोहन

समस्तीपुर(बिहार)


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