पता है उसका जो लापता है
पता है उसका जो लापता है
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पता है उसका जो लापता है,
आखिर कहूँ किससे और कहाँ,
जो खुद ही मुझसे बेहद खता है,
पता है उसका जो लापता है।।
कभी समंदर के तह तक जाऊँ,
कभी पंक्षी बन अंबर तक जाऊँ,
मन के अंदर मची इसी कौतूहल से,
कभी कभी बीच सड़क पर ही,
तन्हा सा खड़े होकर चिंतित मन से,
बस उन्हें ही ढूंढने लग जाता हूँ,
जिसका पता है फिर भी वो लापता है।
जो खुद ही मुझसे बेहद खता है,
पता है उसका जो लापता है।।
ना जाने तुम अभी किस,
जमाने में खो गए हो ?
आखिर क्यों मुझे तुम,
अकेला यूँ छोड़ गए हो ?
प्रियतम मेरे बस पास,
तेरा वही तो एक पता है,
मान भी जा अब तो प्यारे,
अपनी निग़ाहों से ढूंढता रहूँगा,
जब तक तू लापता है,
जब तक तू लापता है।।
जो खुद ही मुझसे बेहद खता है,
पता है उसका जो लापता है।।
आखिर कहूँ किससे और कहाँ,
जो खुद ही मुझसे बेहद खता है,
पता है उसका जो लापता है।।
✍️✍️ @ हरे कृष्ण प्रकाश
बहुत हीं अच्छी कविता लिखि है आपने
ReplyDeleteसप्रेम आभार प्रिय
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