देखो आदमी खुद को कामयाब समझ रहे
देखो, आदमी खुद को कितना,
आज होशियार समझ रहे,
अपनी जमीर बेच कर,
खुद गिर कर लोग, दूसरों को गिरा रहे,
उसे वो नाकामयाब कर,
खुद को कामयाब समझ रहे,
देख ना यार,
आदमी खुद को कितना,
आज होशियार समझ रहे।।
नफरत की बीज बो कर,
अपनों से अलगाव करा रहे,
बात बात पर हथियारों का,
बल देकर आपस में युद्ध करा रहे,
देख ना यार,
आदमी खुद को कितना,
आज होशियार समझ रहे।
उसे वो नाकामयाब कर,
खुद को कामयाब समझ रहे।।
समाज हो या हो अपना देश,
हर जगह ये मिलावट कर रहा,
अपनों के ही दिलों में आदमी,
देखो कितना मीठा जहर घोल रहा।
देख ना यार,
उसे वो नाकामयाब कर,
खुद को कामयाब समझ रहे,
देखो, आदमी खुद को कितना,
आज होशियार समझ रहे।।
✍️हरे कृष्ण प्रकाश
शानदार
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