4/10/20

जान गंवाना बांकी है ! Jaan Gawana Banki Hai ! By-डा.के.के.चौधरी !! Sahitya Aajkal


 न जाने क्या मुझसे ये,जमाना चाहता है?
मेरा ही दिल तोडकर, हंसाना चाहता है!
जाने क्या झलकती है, हमारे  चेहरे से!
हर शख्स क्यों अब मुझे ही, सताना चाहता है!"
      

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  प्रस्तुत है मेरी कविता:- जान गंवाना बांकी है 

"जान गंवाना बांकी है:"
"हौले-हौले चल ऐ जिन्दगी, 
कुछ दरद बंटाना बांकी है !
कुछ और समय देदे मुझको,
कुछ करज चुकाना बांकी है ! 

तेजी में तेरे चलने से, 
कुछ रूठे ओ कुछ छूट गये !
सबको तो मनाना मुश्किल है,
अब तुम्हें हंसाना बांकी है !

दुनिया ने मुझे जो दर्द दिया,
जीवन भर उसको याद रखा !
अपने जीवन के सत्कर्मों से,
कुछ मरज हटाना बांकी है ! 

कुछ चाह अब भी अधूरी है,
कई काम अभी जरूरी है!
इस मन की प्यास अधूरी जो,
उसको निबटाना बांकी है !

रिश्ते और नाते छूट गये,
कुछ जुड़ते-जुड़ते टूट गये !
अनसुलझे प्रेम के रिश्तों को,
अबभी सुलझाना बांकी है ! 

तुम कैसी अपनी काव्यसखा,
क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगा ? 
सांसो पर तेरा नाम लिखा,
तुझको समझाना बांकी है!  

यादों के गम ने है मारा, 
कहां फिरूं?  सूझता ही नहीं! 
क्यों-कैसे तुमसे नेह लगा ? 
ये प्यार निभाना बांकी है! 

बिन पंख पखेरू उड़े कैसे ?
वह कौन निर्मोही है आया ?
इक हवा-हवाई बन भागी, 
अब प्यास मिटाना बांकी है !

क्या-क्या न सुना तेरे खातिर, 
अपमान गरल भी पिया हूँ! 
अपवाद कभी जब भी उठता,
अपनी छाया से ढांकी है!

इस श्वेत-स्नेह का ''साक्षी' जो,
अब वो भी है अनजान बनी ! 
व्यवसाय के संग सम्मान घटा,
अब उसे जमाना बांकी है! 

मैं समझ रहा तुम बेबस हो, 
अपनी मनमानी करने को !
जब याद करोगी आऊंगा,
ये आन निभाना बांकी है! 

बस यही मशविरा देता हूं,
धोखा न किसी को तुम देना!
दिल्लगी न हरदम किया करो,
अब जान गंवाना बांकी है! -      
         ✍️ डा.के.के.चौधरी:(कमल वियोगी )
                डॉक्टर सह कवि (पुर्णियाँ, बिहार)

Blogging By:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि) 
   
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