जिंदगी का सफर :- सिम्मी सुल्ताना
Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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शीर्षक:- ज़िन्दगी का सफर
जो शुरू हुआ ये जीवन सांसों से मेरी,
खत्म भी सांसों पर होनी था।
मगर बार बार लगतार ,
जो सांसों के अलावा भी हो रहा था,
वो मेरा हर पल कुछ न कुछ सीखना था।
जीवन के हर क्षण सीखना मेरे लिए पहला था,
कठिन था, मगर मुझे तो करना था।
पहली बार अपने नन्हे कदमों पर
चलने के लिए खड़े होना, फिर गिरना,
चोट खाकर भी चलने की,
जिद्द करना, आसान न था।
न समझेंगे मेरी बोली कोई ,
फिर तोतली बोली को दूसरों को,
समझना, आसान न था।
स्कूल का पहला दिन जो अंजान सी,
दुनिया जैसा था, वहां रोज़ जाना, आसान न था।
आँखों में पट्टी बांध कर आँख मिचोली खेलते वक़्त
दोस्तों को पकड़ना आसान न था,
शायद आसान न था।।
मगर... ... कच्ची मिट्टी सी थी मैं,
और सपना माँ पापा का,
मुझे एक आकर्षक आकार देना था।
मेरे शिक्षा का संसार मेरे परिवार इतना था।
शिक्षा का संसार मेरी उम्र के साथ बड़ा हो रहा था।
मेरी मंज़िल की सीढ़ियों का पड़ाव
अब तैयार हो रहा था।
पड़ाव आसान न था, मगर पार तो करना ही था।
रुकावटें बहुत थीं, समाधान थोड़ा था।
मेरी लगन, मेरा प्रयास, मेरी मेहनत,
मेरी कोशिश, हर वार पर भारी थी।
परिस्थितियां थी विपरीत, मगर मुझे तो लड़ना था।
कई बार क्या बहुत बार हारी थी,
रुक भी गयी थी, मगर सुकून उसमे भी न था,
शायद सुकून के ही लिए मुझे
मंज़िल की ओर बढ़ना था।
सच कहूं... ... आज भी फासलें बहुत हैं
मेरे क़दमों और मंज़िलों के बीच,
शायद सच में कुछ रंजिश तो है,
मेरी मंज़िल और मुक़द्दर के बीच।।
✍️ सिम्मी सुल्ताना
( बिहार पूर्णियाँ )
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हरे कृष्ण प्रकाश
पूर्णियाँ, बिहार
7562026066
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