5/27/20

मोह - By:- भरत कोराणा

शीर्षक:- मोह - By:- भरत कोराणा
Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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     शीर्षक:- मोह
अहा! भंगिमा मौन साधती,
साधक मन मे गोते लेता,
बड़ा चला मन मे मोह।

अंतरतम आहत आकुल,
देख रहे दरख़्त के पन्ने,
बड़ा चला है मन मे मोह।

सज्जन व्यथित भया निराला,
व्यथित कुंठित रहता दिन भर,
बड़ा चला है मन मे मोह।

सरकारी कुर्सी पर घोंघे,
चाट रहे भोले के कागज,
बड़ा चला है मन मे मोह।

मजदूरी खाई खाते से,
खाते भी खा गए चोर,
बड़ा चला है मन मे मोह।।

बैलो की गोईया भी बिक गयी,
बनिया दुना करता सूद,
बड़ा चला है मन मे मोह।

राज पाट निष्ठुर बन बैठा,
गरीबों को वो गरल पिलाता,
बड़ा चला है मन मे मोह।

लोकतंत्र के नाम दिखावा,
मजदूरी मे मरे मजदूर,
बड़ा चला है मन मे मोह।।
         ✍️ भरत कोराणा
             जालौर राजस्थान


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         हरे कृष्ण प्रकाश 
         पूर्णियाँ, बिहार
        7562026066
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