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6/11/20

कुछ कर गुजरने की By:- सुरेश तृषित

Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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शीर्षक:- कुछ कर गुजरने की By:- सुरेश तृषित
              गजल
कुछ कर गुजरने की तमन्ना अब गुजर गई,
रफ़्तार जिंदगी की जैसे एकदम ठहर गई।।
न जाने कितने मनसूबे, न जाने कितनी इरादे,
तूफान से सीने में उठे, फिर जाने कहाँ लहर गई।।

कौन जाने दरिया जो चली थी उमड़ कर कि,
समंदर से मिलकर रहूँगी, वह किस डर पर ठहर गयी।।
कैसे करें उम्मीद इस जिंदगी में नए शहर की,
दिखाई देती नही कोई रौशनी, जहाँ तक नजर गई।।

मंज़िल कहाँ हर किसी को मिलती है राहे सफर में,
बस यूं ही चलते चलते मुसाफिर में जिंदगी गुजर गयी।
महफिल,  हमदम,  यार, हमदोस्त उन्हें हो मुबारक,
अपनी  तो   तन्हा  ही   बस कट  हर  सफर गयी।।
            ✍ सुरेश "तृषित"
      जगद्दल उत्तर 24 परगना
                पश्चिम बंगाल

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         हरे कृष्ण प्रकाश 
         पूर्णियाँ, बिहार
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2 comments:

  1. बहुत सुंदर ।

    वर्तमान हालात से क्षुब्ध मन की व्यथा

    बहुत खूब ,बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. हृदय से कही बाते सभी हृदयो को छु गयी ।

    अदभुत रचना

    ReplyDelete