Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
चंद पंक्तियाँ मेरे पापा के नाम
"फादर्स डे स्पेशल"
वह हाथ जो आपका साथ कभी नहीं छोड़ सकता। हालाँकि परिस्थितियाँ कभी-कभी प्रतिकूल हो जाती हैं लेकिन प्रतिकूल को अनुकूल बनाना आपका काम है।
दुनियां भले ही आपका साथ छोड़ दे लेकिन यह हाथ आखिरी दम तक आपके हाथों को थामे रखने की पुरज़ोर कोशिश करता है। ☺️☺️☺️
अक्सर कहा जाता है कि
"बेटे जहाँ माँ के लाडले होते हैं तो
बेटियाँ पापा की परियाँ"
यह कुछ हद तक सही भी है। मम्मी लोगों का जहाँ सॉफ्ट कॉर्नर अपने बेटों के लिए होता है तो वहीं पापा लोगों का सॉफ्ट कॉर्नर कहीं न कहीं उनकी बेटियों के लिए होता है।
तो पापा की इस परी की तरफ से "फादर्स डे" के अवसर पर उनके लिए समर्पित कुछ पंक्तियाँ -
कहते हैं कि
माँ के आँचल में
गर अपार ममता है
तो पिता के साये में
कभी न टूटने वाला भरोसा
माँ की नजरों में तुम्हारी
हरपल की खुशी होती है
तो पिता की नज़रें तुम्हारी
सफलता को जोहती है
माँ गर तुम्हारे मन पसंद
खाने का ख्याल रखती है
तो उसकी औलाद कभी भूखी न रहे
पिता की हमेशा कोशिश रहती है
तुमको पालने को माँ गर
चूल्हे चौके में अपनी आंखें फोड़ती है
तो आपके सुनहरे भविष्य के लिए
पिता अपनी एड़िया घिसवाता है
माँ का दुलार आपको
वात्सल्य का एहसास कराता है
तो पिता की डांट आपको
आपके लक्ष्य की याद दिलाता रहता है
ये अंतिम कुछ पंक्तियाँ मेरे दिल के बेहद करीब है। यानी मेरे जीवन का ही एक हिस्सा है।
बात दरअसल तब की है जब मेरे परिवार वाले मुझे आईएएस की तैयारी करने के लिए दिल्ली छोड़ने आये थे। यह पहली दफा था जब मैं किसी भी वजह से अपने घर परिवार से दूर जा रही थी वह भी दिल्ली। 2016 की बात है यह जब मैं दिल्ली आई थी। मेरे रहने के लिए मुखर्जीनगर में ही एक पीजी देखा गया था। मुझे सी ऑफ करने का वक्त आया। माँ खूब लिपट के रोई थी और मैं भी। उस वक्त मेरा फेस पापा की ही तरफ था। उनकी आँखें नम थी चेहरा पूरा सुख गया था और उन्हें जब लगा कि मैं उनको नोटिस कर रही हूँ तो उन्होंने मेरे से अपना मुँह फेर लिया था कहीं मैं और न रोने लगूँ। पापा का वह चेहरा आज भी मुझे याद है कैसे उन्होंने अपने दर्द को छुपाकर मुझसे ही मुँह मोड़ लिया था। मुझे बस बार बार यही खल रहा था कि पापा लास्ट में जाते वक्त मुझे देखा क्यों नहीं और मुझसे कुछ बोले क्यों नहीं ?
दरअसल बात यह है कि पापा माँ की तरह खुलकर न कभी अपना प्यार जता पाते हैं और न हीं गम पर हाँ उनकी आँखें और उनका चेहरा सबकुछ कह जाता है। इसके कुछ दिनों बाद फ़ोन से घर पर वार्तालाप के दौरान जब मैंने माँ से बोला कि पापा लास्ट में जाते वक्त मुझे देखें भी नहीं तो माँ बताई मुझे कि ऐसा नहीं है जैसा तुम सोच रही हो। तुमको छोड़ के आने के बाद वो रात भर सोये नहीं थे। बार-बार यही कहते कि करिश्मा को फोन करके पूछो तो पता नहीं कैसी होगी? पहली बार घर से दूर गई है पता नहीं उसका मन लग रहा होगा कि नहीं? नींद तो आ रही होगी न उसे रो तो नहीं रही कहीं वह ?
तो मेरे जीवन के इसी किस्से का सारांश है निम्न पंक्तियाँ -
करने को खुद से दूर गर
माँ फूट-फूट कर रोने लगती है
तो पिता अपने कलेजे को भारी कर
अपने आँसुओं को छुपा लेता है
#HappyFathersDay PaPa 😊😊😊😊
✍️ करिश्मा शाह
नेहरू विहार, नई दिल्ली
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शीर्षक:- पिता के साये में कभी न टूटने वाला भरोसाचंद पंक्तियाँ मेरे पापा के नाम
"फादर्स डे स्पेशल"
वह हाथ जो आपका साथ कभी नहीं छोड़ सकता। हालाँकि परिस्थितियाँ कभी-कभी प्रतिकूल हो जाती हैं लेकिन प्रतिकूल को अनुकूल बनाना आपका काम है।
दुनियां भले ही आपका साथ छोड़ दे लेकिन यह हाथ आखिरी दम तक आपके हाथों को थामे रखने की पुरज़ोर कोशिश करता है। ☺️☺️☺️
अक्सर कहा जाता है कि
"बेटे जहाँ माँ के लाडले होते हैं तो
बेटियाँ पापा की परियाँ"
यह कुछ हद तक सही भी है। मम्मी लोगों का जहाँ सॉफ्ट कॉर्नर अपने बेटों के लिए होता है तो वहीं पापा लोगों का सॉफ्ट कॉर्नर कहीं न कहीं उनकी बेटियों के लिए होता है।
तो पापा की इस परी की तरफ से "फादर्स डे" के अवसर पर उनके लिए समर्पित कुछ पंक्तियाँ -
कहते हैं कि
माँ के आँचल में
गर अपार ममता है
तो पिता के साये में
कभी न टूटने वाला भरोसा
माँ की नजरों में तुम्हारी
हरपल की खुशी होती है
तो पिता की नज़रें तुम्हारी
सफलता को जोहती है
माँ गर तुम्हारे मन पसंद
खाने का ख्याल रखती है
तो उसकी औलाद कभी भूखी न रहे
पिता की हमेशा कोशिश रहती है
तुमको पालने को माँ गर
चूल्हे चौके में अपनी आंखें फोड़ती है
तो आपके सुनहरे भविष्य के लिए
पिता अपनी एड़िया घिसवाता है
माँ का दुलार आपको
वात्सल्य का एहसास कराता है
तो पिता की डांट आपको
आपके लक्ष्य की याद दिलाता रहता है
ये अंतिम कुछ पंक्तियाँ मेरे दिल के बेहद करीब है। यानी मेरे जीवन का ही एक हिस्सा है।
बात दरअसल तब की है जब मेरे परिवार वाले मुझे आईएएस की तैयारी करने के लिए दिल्ली छोड़ने आये थे। यह पहली दफा था जब मैं किसी भी वजह से अपने घर परिवार से दूर जा रही थी वह भी दिल्ली। 2016 की बात है यह जब मैं दिल्ली आई थी। मेरे रहने के लिए मुखर्जीनगर में ही एक पीजी देखा गया था। मुझे सी ऑफ करने का वक्त आया। माँ खूब लिपट के रोई थी और मैं भी। उस वक्त मेरा फेस पापा की ही तरफ था। उनकी आँखें नम थी चेहरा पूरा सुख गया था और उन्हें जब लगा कि मैं उनको नोटिस कर रही हूँ तो उन्होंने मेरे से अपना मुँह फेर लिया था कहीं मैं और न रोने लगूँ। पापा का वह चेहरा आज भी मुझे याद है कैसे उन्होंने अपने दर्द को छुपाकर मुझसे ही मुँह मोड़ लिया था। मुझे बस बार बार यही खल रहा था कि पापा लास्ट में जाते वक्त मुझे देखा क्यों नहीं और मुझसे कुछ बोले क्यों नहीं ?
दरअसल बात यह है कि पापा माँ की तरह खुलकर न कभी अपना प्यार जता पाते हैं और न हीं गम पर हाँ उनकी आँखें और उनका चेहरा सबकुछ कह जाता है। इसके कुछ दिनों बाद फ़ोन से घर पर वार्तालाप के दौरान जब मैंने माँ से बोला कि पापा लास्ट में जाते वक्त मुझे देखें भी नहीं तो माँ बताई मुझे कि ऐसा नहीं है जैसा तुम सोच रही हो। तुमको छोड़ के आने के बाद वो रात भर सोये नहीं थे। बार-बार यही कहते कि करिश्मा को फोन करके पूछो तो पता नहीं कैसी होगी? पहली बार घर से दूर गई है पता नहीं उसका मन लग रहा होगा कि नहीं? नींद तो आ रही होगी न उसे रो तो नहीं रही कहीं वह ?
तो मेरे जीवन के इसी किस्से का सारांश है निम्न पंक्तियाँ -
करने को खुद से दूर गर
माँ फूट-फूट कर रोने लगती है
तो पिता अपने कलेजे को भारी कर
अपने आँसुओं को छुपा लेता है
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हरे कृष्ण प्रकाश
पूर्णियाँ, बिहार
7562026066
नोट:- सभी कविताएँ साहित्य आजकल के youtube पर अपलोड कर दी जाएगी।
यदि आप अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो Whatsapp video करें 7562026066
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धन्यवाद
*Sahitya Aajkal*
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