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7/12/20

काश तुम भी साथ मेरे गुनगुना पाते-By:-डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश

Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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शीर्षक:- काश तुम भी साथ मेरे गुनगुना पाते

काश तुम भी साथ मेरे गुनगुना पाते,
सच कहूं यह गीत मेरे अमर हो जाते।।
मात्र इनमें शब्द की सत्ता नहीं है,
अक्षरों की वृहद गुणवत्ता नहीं है,
यह अकिंचन हैं मृदुल स्वर इनके बन जाते,
सच कहूं यह गीत मेरे अमर हो जाते।।१।
भाव से भरपूर हैं पर अल्पता कुछ है,
रूप की आकृति में खोई वेदना कुछ है,
सरसता की बूंद बनकर मेघ बरसाते।
सच कहूं यह गीत मेरे अमर हो जाते।२।
रस नहीं इनमें, तुम्हारे अधर फलकों में,
अलंकारिक असहजता बसती है अलकों में,
दग्ध है यदि छांव अलकों की तनिक पाते,
सच कहूं यह गीत मेरे अमर हो जाते।३।
समेटे यह अंग ,दुबके एक कोने में,
समझ पाते नहीं सुख क्या एक होने में,
नेह की रसधार से यदि इनको नहलाते।
सच कहूं यह गीत मेरे अमर हो जाते।४।
तुम इसे अनुरोध मानो या निवेदन नाम दो,
प्रिय स्वयं परिवेश में नूतन इन्हें आयाम दो,
सुशीतल सुरभित अजिर में ठांव यह पाते,
सच कहूं यह गीत मेरे अमर हो जाते।।५।
       ✍️डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
              वाराणसी  (221005)
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         हरे कृष्ण प्रकाश 
         पूर्णियाँ, बिहार
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1 comment:

  1. सच कहूँ यह गीत मेरे अमर हो जाते
    --------------------------
    बहुत-बहुत बहुत-ही भावप्रण रचना ।
    मेघदूत की भाँति गीत के माध्यम से अपने प्रिय को कवि के द्वारा प्रेषित संदेश प्रेमाभिव्यक्ति की ऩई ऊँचाईयाँ छूता है ।
    इतनी संवेदनसिक्त कविता के सृजन के लिए और साझा करने के लिए कविवर शैलेश जी को बहुत धन्यवाद
    एवं बधाई ।
    अशोक कुमार
    किशनगंज
    बिहार

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