7/7/20

नन्ही परी की जान- By:- निर्मला

Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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शीर्षक:- नन्ही परी की जान- By:- निर्मला
 कितना अभागा दिन था वो, मैं अपनी कक्षा में बच्चों को पढ़ा रही थी। लेकिन ध्यान मेरी भी फोन की तरफ ही था कि कब चंडीगढ़ से फोन आए की रियाना अब ठीक है। सुबह से चार-पांच बार मैं फोन कर चुकी थी। बस यही जबाव मिलता था कि डॉक्टर अभी कुछ बता नहीं रहे। मेरा मन बहुत बेचैन था। मैं जाना चाहती थी उसके पास लेकिन कुछ मजबूरियों के कारण नहीं जा सकी। सुबह 4 बजे मैं उठी तो जाने
क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे शरीर का कोई अंग टूट रहा हो। मैंने नहा-धो कर पाठ किया और आज मैंने सिर्फ उस नन्ही परी के लिए दुआ मांगी। जो डायबिटीज के कारण आज पी.जी.आई में दाखिल थी कितना दुख झेला उस नन्ही-सी जान ने। अच्छी-भली तो थी, हमारी प्यारी-गुड़िया।सभी की चहेती। हमें इतना ताजुब हुआ जब दीदी ने हमें बताया था कि रियाना को डायबिटीज है और उसे जालंधर अस्पताल में लेकर आए हैं चार-पांच दिन लगातार बीमार रहने पर उसके टैस्ट करवाए तो पता चला था कि उसे यह नामुराद बीमारी है। पता चलने के बाद क्या कुछ नहीं किया दीदी ने। दीदी ने डॉक्टरों की हर बात मानी, पूरा परहेज किया। घर से मीठा तो जैसे खत्म ही कर दिया। जैसा खाना वो रियाना को देती, खुद भी वैसा ही खाती ताकि उस नन्ही परी को महसूस ना हो। उधर विदेश में बैठे रियाना के पापा भी चिंता में डूब गए। छुट्टी लेकर आए अपनी बच्ची का इलाज करवाने। दोनों पति-पत्नी ने अपनी बेटी के लिए बहुत दुआएं की। जहां-जहां कोई बताता रहा, वहां-वहां उसे लेकर जाते रहे। सभी को रियाना की बहुत चिंता थी। उसके स्कूल में भी सभी उसके खान-पान और दवाई का ध्यान रखते थे। उसके पापा की छुट्टी ख़त्म हुई और वो चले गए इस उम्मीद के साथ की अगली छुट्टी तक शायद मेरी बेटी बिल्कुल ठीक ही जाएगी। लेकिन क्या पता था कि भगवान को कुछ और ही मंजूर था।

                 रियाना अब बहुत कमजोर हो चुकी थी और तक चुकी थी, वो नन्ही जान इतनी दवाइयां, इतने इंजेक्शन लगवा-लगवा कर। बच्चों को तरह-तरह की चीजें कहते देखती तो कितना जी ललचाता, उस बच्ची का लेकिन इतने हौसले वाली थी कि हमेशा कहती जब मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊंगी तो सब कुछ खाऊंगी।                   
               दुख तो सभी मानते हैं लेकिन साथ कोई नहीं देता। बेचारी दीदी ने जो किया शायद ही कोई मां इतना कर सकती थी। वो अकेली अपनी बच्ची को लेकर कभी किसी अस्पताल में तो कभी किसी में घूम रही थी, कभी मंदिर में उससे दान करवाती तो कभी गुरुद्वारे में पाठ करवाती। बहुत कुछ किया मेरी बहन ने। इन्हीं सोचों में डूबी मैं फोन का इंतजार कर रही थी कि मेरे कानों को कुछ अच्छा सुनने को मिले, कोई कह दे कि रियाना अब बिल्कुल ठीक है। दो बार उसे पहले अटैक आ चुका था। आज वो पी.जी.आई में बेहोश पड़ी थी। कल से दीदी उसे लेकर गई है, लेकिन कोई फर्क नहीं। मेरे फोन की घंटी बजी मैंने जल्दी से फोन उठाया। जैसे ही मैंने सुना कि रियाना अब इस दुनिया में नहीं रही, मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई। मेरी आंखो से आंसू बह रहे थे लेकिन मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मैं बार-बार सभी को फोन कर रही थी कि कोई कह दे कि यह झूठ है।लेकिन दीदी की उन चीखों ने, उस तड़प ने अहसास दिलाया कि यह सच है। मेरी बहन ने अपनी आंखों के सामने अपनी नन्ही परी को यह दुनिया छोड़कर जाते देखा, कितना तड़पा होगा उस मां का दिल,कितना चिल्लाई होगी वो, कैसे अपने जिगर के टुकड़े को मरते देखा होगा।  हे भगवान, किसी मां को ऐसा दिन मत दिखाना। तड़प उठता हैं मन अपने बच्चे के जरा-सी  चोट लगने पर भी, रूह कांप जाती है, अपने बच्चे को मुश्किल में देख कर और उस मां ने पता नहीं किस तरह विदा किया अपनी नन्ही-सी परी को इस दुनिया से। उस नन्ही परी का जाना हम कभी नहीं भूल सकते। हमेशा जिन्दा रहेगी हमारी यादों में हमारी बच्ची। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे और उसकी मां को सब्र करने का हौसला दे।।
                                 ✍️ निर्मला
                           होशियारपुर (पंजाब)

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         हरे कृष्ण प्रकाश 
         पूर्णियाँ, बिहार
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1 comment:

  1. अत्यंत मार्मिक कहानी! कहानी का अंत बहुत ही दुखद!

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