Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश
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केस पाकल बा, देह थाकल बा
बेमतलबे क़ुछऊ बड़बड़ात बानी
छोटो-मोट बतिया प अब हम,
तिली-तिली खिसियात बानी
बुझाता कि अब बुढ़ात बानी!
लेले बा जाने कवन हड़बड़ी,
कटल तिलंगी बन उधियात बानी
उतरे के जब होता एगो सीढ़ी,
जोड़ा उतर के चीहात बानी
बुझाता कि अब बुढ़ात बानी!
रहनी घींचत घीव घटघट कबो,
दुइये-गो लिट्टी अब खात बानी
पेट के अँतड़ी-पतड़ी ढीला,
डक्टर लगे रोजे छिछियात बानी
बुझाता कि अब बुढ़ात बानी!
आँखि प ललटेन बा चढ़ल,
हाँके में गाड़ी डेरात बानी
कोंड़त रहनी दिल्ली-बम्बे,
अरे आरे में अब हेरात बानी
बुझाता कि अब बुढ़ात बानी!
धाँगत रहनी पँच-सत कोस कबो,
दसे डेग में अब हाँफ जात बानी
टरेन दऊर के धई लेत रहनी,
एरोप्लेनो में अब घबरात बानी
बुझाता कि अब बुढ़ात बानी!
काल्हु के कहल सुनल बतिया,
आजुवे अब हम भुलात बानी
पेन्सन-ओन्सन के टेन्सन में,
दिनो-रात अन्सात बानी
बुझाता कि अब बुढ़ात बानी!
खून पसेना लोर चुआ के,
जोड़ल दुमहला में सुस्तात बानी
डूबनी उतरईनी भरपूर जवानी में,
मउवत प "तरकश" घबरात बानी?
गरांटी बा कि अब बुढ़ात बानी!
✍️परमेश्वर नाथ पाठक
रोहतास, बिहार
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धन्यवाद
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बुढ़ापे की व्यथा का बेहतरीन कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई आदरणीय !
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