Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश
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नन्हें पैरों की की आहट
उसे हर पल सताने लगे हैं
बेटी के पिता अब
खुद को दिन-रात जगाने लगे हैं
दहेज़ के वो ख़ौफ़नाक मंजर
उस पिता को याद आने लगे हैं
फ़िक्र अपनी बेटी का है
मामला उसकी जिंदगी का है
कैसे करे शादी उसकी
वो भी बिना दहेज़ के
ये सोचकर वो बाप, खुद को
गिरवी लगाने वाले है
दहेज़ के वो, ख़ौफ़नाक मंजर
उस पिता को याद आने लगे हैं!
कैसे खुद को मना ले पिता
कैसे ख़ुश हो, डोली में भेज के
बिन दहेज़ दिए, उस बेटी को
रखेगा कौन सहेज के
ये प्रश्न उसके दिल की
धड़कनों को बढ़ाने लगे हैं
दहेज़ के वो ख़ौफ़नाक मंजर
उस पिता को याद आने लगे हैं!!
प्रश्न ये गंभीर है
आखिर कब तक ये चलेगा
बेटी को जलाकर भी
क्यों वो पापी बचेगा
दहेज़ को लेकर
वो ज़ुल्म कब तक करेगा
इन्हीं गमों के चलते
सोच -सोचकर
एक पिता कब तक मरेगा??
ऐ खुदा
तुझसे बस यहीं शिकायत है
उन दहेज़ के दानवों को
सजा में कैसे रियायत है !!
✍️. दुर्गादत्त पाण्डेय
रोहतास, बिहार
हरे कृष्ण प्रकाश
पूर्णियाँ, बिहार
7562026066
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दहेज प्रथा का बिरोध करती बेहतरीन कविता के लिए श्री दुर्गादत्त पांडेय जी को सस्नेह बधाई तथा अनंत शुभकामनाएँ!
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