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🙏जय श्री राम🙏
शीर्षक:- अभिनन्दन स्वागत है
मेरे प्रभु श्री राम की
*
जन्म*--
गूंज उठे वो महल
उनकी
मधुर वाणी से
झूम उठे बादल भी
पुरोषत्तम की अगवानी से
खिल उठे हर -पुष्प
स्पर्श चरणों का पाने से
इक इक आस जगी देवों में
प्रभु का धरा पर जाने से
अवतरित हुए नारायण
स्तुति हुई भगवान की
अभिनंदन -स्वागत है
मेरे प्रभु श्री राम की
वन-गमन --
पितु आज्ञा से प्रभु
वन-गमन को चल दिए
भार्या सीता,भाई लखन
दोउ को भी संग लिए
पथरीले दुर्गम राहों पर
प्रभु नंगे पैर ही चल रहें हैं
कोमल उन चरणों से
रक्त की धारा,बह रहें हैं
गर्मी-सर्दी, बारिश की बुँदे
हर-कष्ट नारायण सह रहें हैं
जगत के, पालनकर्ता
कर्तव्य का पालन कर रहें हैं
नमन है, बंदन है
मनुष्यता के मिशाल की
अभिनन्दन स्वागत है
मेरे प्रभु, श्री राम की
समुन्द्र तट --
समुन्द्र- तट पर नारायण
सागर से राहें, मांग रहें हैं
सबको राह, दिखलाने वाले
खुद को, मर्यादावश
बांध रहें हैं
अनुनय-विनय प्रभु का
तीन-दिन चलते रहे
मंदबुद्धि सागर के जल
नित-निरंतर बढ़ते रहे
कुपित हुए, पुरुषोत्तम
सागर के इस अज्ञान से
संधान किये, ब्रह्मस्त्र
जगतपिता के नाम से
संसार ने देखा, अभी
उस शांतचित श्री राम को
संसार आज देखेगा
क्रोधित,
श्री भगवान को
सागर-चरणों में
आ गिरा
त्राहिमाम करते-करते
द्रवित हुए रघुनंदन
भयमुक्त किए,
सागर के
क्षमाशील, कोमल -ह्रदय,
है
शम्भु के आराध्य की अभिनंदन
स्वागत है
मेरे प्रभु, श्री राम की
नागपास--
नागपास में बंधे,नारायण
इस धरा,
पर सो रहे
शेष-शैय्या पर
सोने वाले
नागपास में
सो रहे है
गरुण देव,
इस दृश्य से.
स्तब्ध, अचम्भित
रह गए
मायापति की माया में
पक्षीराज भी उलझ गए
गरुण देव के प्रश्न भी
व्याकुलता में रह गए बंधन,
काटन-हारे
कैसे,
बंधन में बंध गए
अपनी माया, वो ही जाने
मायापति श्री राम जी
अभिनन्दन,
स्वागत है
मेरे प्रभु, श्री राम की
रावण-वध--
कालचक्र ने घटनाक्रम को
आगे और बढ़ाया
श्रीराम -रावण युद्ध देखकर
ब्रह्माण्ड तक थर्राया
सत्य-असत्य, आमने-सामने
विजयी कौन, रहेगा
किस,
पक्ष में होगा, ये निर्णय
अभी ये कौन कहेगा
दशग्रीव का ऐलान
ये
ज़ब-तक धरा पे रहेगा
किसी भी कीमत पर,
दशानन
अब, पीछे नहीं हटेगा
नारायण से युद्घ रावण का
युद्ध अब न रुकेगा
जीवन के अंतिम क्षणों तक
रावण का, सर न झुकेगा
मृत्यु-तुल्य प्राणी है, वो
जो डर से,
सर झुकता है
मृत्यु आने से पूर्व ही वो,
बार -बार मर जाता है
हार -जीत, इस जीवन की
ये कड़वी सच्चाई है
वीर,
वहीं जो लड़े, हमेशा
भले,
कोई घड़ी भी आई है
इस युद्ध में रावण माया-युद्ध को
ठान रहा
मायापति पर,
निज माया का
कैसा,
बंधन वो बांध रहा
तीनों लोक के
अधिपति को
कब, रावण पहचानेगा
मायापति के समक्ष, वो
कब तक,
माया वो ठानेगा रघुवीर के हाथों से
कब-तक रावण बच पायेगा
नारायण के, हाथों मरकर
सीधे,
स्वर्गलोक को जायेगा
श्री राम के एक, तीर ने
लंकेश के प्राणों को,
हर लिए
वीर, दशानन,
रावण
अंतिम -सफ़र को,
चल दिए
हार हुई रावण की
विजयी हुए, श्रीराम जी
अभिनंदन
स्वागत है
मेरे,प्रभु श्रीराम की
अयोध्या-आगमन --
लंका से अयोध्या
अब जाने की बारी है
जन्मभूमि, जाने हेतु
रघुबर की, अब तैयारी है
श्री राम के स्वागत में
पुष्पक-विमान तैयार रहा
प्रभु के चरण, स्पर्शों का
पुष्पक को, ये इंतजार रहा
आसीन हुए, पुष्पक पर
राम,
लखन व जानकी
अभिनंदन
स्वागत है
मेरे प्रभु, श्री राम की
प्रभु,निज पत्नी व भाई सँग
अपने भक्तों को, साथ लिए
रघुनंदन की आज्ञा से
पुष्पक,
अवध की ओर चल दिए
राम-राज्याभिषेक
रघुबर की
अगवानी, हेतु
तैयार,
अयोध्या सारी है
हर्षित हुए,
पशु -पक्षी भी
हर्षित सभी,
नर -नारी हैं
सौभाग्यशाली
वो अवध -भूमि
जहाँ,
उतरेंगे श्री राम जी
अभिनंदन
स्वागत है
मेरे प्रभु श्री राम की
चौदह वर्षों की अवधि भी
रघुनंदन वन में बिता दिए
जन्मभूमि,
पहुंचें प्रभु
सिया-लखन को
सँग लिए
अभिनंदन,
सादर अभिनंदन है प्रभु श्री राम जी
अभिनंदन स्वागत है मेरे प्रभु,
श्री राम की
राज्याभिषेक के
उत्सव की
तैयारी अवध में,
शुरू हुई
राजा होंगे,
सियापति
सब कष्ट हरेंगे,
श्री हरि
गुरुदेव की, आज्ञा से
मंत्रोचार शुरू हुआ
तीनों लोक के,
अधिपति का
राज्याभिषेक
सम्पन्न हुआ
नारायण के
छत्र-छाया में
रहेगी अयोध्या धाम भी
अभिनंदन स्वागत है
मेरे प्रभु,
श्री राम की
राम -राज्य आने से
सम्पूर्ण, अयोध्या झूम रहा
धरती से ब्रह्माण्ड तक
बस,
राम -राम ही गूंज रहा
खिल उठे मुरझाये, पुष्प कृपादृष्टि पड़ी,
राम की
अभिनंदन स्वागत है
मेरे प्रभु, श्री राम की !!
*समाप्त*
*जय श्री राम*
✍️ दुर्गादत्त पाण्डेय
डी ए वी पीजी कॉलेज,बीएचयू
(वाराणसी)
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