जैसे-जैसे बढ़ती है बालों की सफेदी
परिपक्वता सोच में आती ही है।
सबक सीखो अथवा न सीखो
सब मर्जी है तुम्हारी।
पर सलीका व सबक
जिन्दगी सिखाती ही है।
जैसे-जैसे बढ़ती है......
बस निर्भर करता है इन्सान पर
खुद को वो जिस कदर भी ढाले।
इच्छा उसकी ही होती है
अंत में निर्णय की।
चाहे गुलाब बन महके अथवा
खुद को कांटा बना ले।
बस सोच का ही तो कमाल है साहिब,
यही तो मानव को विशिष्ट बनाती है।
वर्ना ...माँ की कोख तो एक सी ही है
तो क्यों वो अलग - अलग.
मानव उपजाती है?
जैसे -जैसे बढ़ती है... ...
बस में तेरे ही है रे मानव!
चाहे खुद को तू जिस रास्ते
पर भी चला ले।
चाहे बन जा मिसाल जग के लिए अथवा
जग को खुद का आलोचक बना ले।
दुनिया ये बन जाती है, उसी की जिसकी
शिद्दत उसे कदमों में झुकाती है।
जैसे-जैसे बढ़ती है बालों की सफेदी
परिपक्वता सोच में आती ही है... ...
परिपक्वता सोच में आती ही है।
✍️ पूजा रानी
( गढ़शंकर पंजाब )
यदि आप अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो Whatsapp video करें 7562026066
Youtube Channel link-- Sahitya Aajkal plz Subscribe Now
आप सभी से अनुरोध है कि हमारे इस प्रयास में अपना योगदान दे! अगर आप को लगता है कि आप अच्छा लिखते हैं या आप अपने आस पास किसी भी व्यक्ति को जानते हो जो अच्छा लिखते हैं, उन्हें हमारे वेबसाइट के बारे में ज़रूर बताएं साथ ही Sahitya aajkal के यूट्यूब से जुड़ें।
*साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए साहित्य आजकल दृढ़ संकल्पित होकर सभी रचनाकारों को अपनी प्रतिभा दुनियाँ के सामने लाने के लिए अवसर प्रदान करती है। यदि आप अपनी प्रस्तुति देना चाहते हैं तो अपनी वीडियो वाट्सएप करें- 7562026066*
धन्यवाद
*Sahitya Aajkal*
मानव जीवन को सुन्दर संदेश देती बेमिसाल गीत के लिए आदरणीया पूजा रानी को सहृदय बधाई तथा अनंत मंगलकामना!
ReplyDeleteTks sir
Delete