शीर्षक:- सवाल पूछती है औरत!
मित्रों आदरणीया प्रीतम प्रकाश के द्वारा महिलाओं को लेकर बहुत ही सराहनीय कविता लिखी गई है ! इसका उद्देश्य यह है कि आखिर महिला या औरत कैसे रहती हैं ?उनका अस्तित्व क्या है? परिवार में क्या सम्मान मिलता है? आखिर महिला क्या चाहती हैं ? इन तमाम बातों को ध्यान में रखकर लेखिका ने बहुत ही मार्मिक कविता की रचना की हैं आइए देखते और समझते हैं कविता की भाव को 💕🙏
शीर्षक:- सवाल पूछती है औरत!
मेघ-सा घर-आँगन में बरसती है औरत,
पर अपनी पहचान को तरसती है औरत!
तन के भूगोल से परे भी मैं कुछ हूँ क्या
हर वक़्त ख़ुद से सवाल पूछती है औरत!
धीमी आँच पर गोल रोटी सेंकते हुए,
अपने दुख-दर्दों को भी सेंकती है औरत!
पहाड़ों के सीने में लगी आग की तरह,
तिल-तिल कर रोज़-रोज़ ही जलती है औरत!
बंदिशों को सोने के ज़ेवर-सा पहनकर,
घुट-घुट कर नहीं जीना चाहती है औरत!
खुले नभ में चिड़िया-सी उड़ने की है चाह,
पर कतरने की साज़िश समझती है औरत!
कोई तो ज़ख़्मों पर प्यार से हाथ रखे,
बस इसी चाहत के लिए मरती है औरत,
झाड़ू से बुहार कर सारा कूड़ा-कचरा,
एक साफ़-सुथरी दुनिया सिरजती है औरत!!
@ P. Prakash
पूर्णियाँ , बिहार
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धन्यवाद
स्त्री के मन की बात, उसकी पीड़ा और उसकी आकांक्षाओं को प्राकृतिक उपमानों के प्रयोग से बड़ी ही हृदयविद् अभिव्यक्ति दी गई है इस कविता में ।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी काव्य रचना के लिए रचयिता को बहुत-बहुत साधुवाद, धन्यवाद।
कुमार अशोक
तहेदिल से शुक्रिया बसर
Delete"सवाल पूछती है औरत"-बेमिसाल रचना जो एकबार सबके दिलों को झकझोर कर रख देगी लेकिन आज की औरतों को पहले जैसा दुःख -दर्द एवं वंदिशें नहीं है सिवा एक शर्मसार करनेवाली घटना के ।सस्नेह बधाई व अनंत आशीर्वाद के साथ उज्ज्वल भविष्य की कामना है!
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