शीर्षक:- झूठ का बोलबाला By:- प्रीतम कुमार झा
कवि के द्वारा बहुत ही सुंदर सृजन किया गया है। जरूर पढ़ें
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"" झूठ का बोलबाला ""
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इस दुनियां के रंग निराले,
कुछ उजले तो कुछ हैं काले।
मेहनत करता लंगोटी वाला,
मजा लूटते धोती वाले ।
इस चक्कर में पड़कर देखो,
निकल गया दिवाला है।
झूठ का बोलबाला है,
झूठ का बोलबाला है।
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जो है झूठ बोलने में आगे,
भाग्य उसी के जैसे जागे।
दूजे को तो कुछ न समझे,
सच भी डरकर दूर हीं भागे।
यारों किस्मत ने हीं हमको,
आज तलक संभाला है।
झूठ का बोलबाला है,
झूठ का बोलबाला है।
सच खोजो तो,सच न मिलेगा,
अन्याय का फूल खिलेगा।
कैसी है रब तेरी माया,
कहीं है धूप, कहीं पर छाया ।
अब तो प्रभु धरा पर आओ,
आफत में निवाला है।
झूठ का बोलबाला है,
झूठ का बोलबाला है।
✍️ ---प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार ।
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धन्यवाद
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