खुशी दो या न दो- डॉ.मेहता नगेन्द्र
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खुशी दो या न दो- डॉ.मेहता नगेन्द्र
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ग़ज़ल
खुशी दो या न दो अपना गम दे दो
मगर साथ में अच्छा मौसम दे दो
दिया है गम गहरा बीते मौसम ने
ज़ख़्म सुखाने को कुछ महरम दे दो
रहा मौसम अच्छा गम भी सह लेंगे
राह में चलने को तेज कदम दे दो
नहीं चाहिए रहने को शीशमहल
मगर एक अदद सब़्ज आलम दे दो
सूख गई नदिया सूख गया पोखर
प्यास बुझाने को कुछ शबनम दे दो
स्वच्छ हवा साफ पानी कहाँ मिलेंगे
पता ढ़ूँढ़ने का कुछ दमख़म दे दो
सभी लोग चाहते हैं सुखी रहना
स्वर्ग नहीं तो उससे कुछ कम दे दो
इसी आस में ' मेहता ' भी खड़ा है
हरे जीवन का एक परचम दे दो
✍️ डॉ.मेहता नगेन्द्र
(पटना, बिहार)
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