सभी चयनिय रचनाकारों को को बहुत बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनाएं। आज दिनांक- 05/05/21 को साहित्य आजकल पटल पर प्रेषित की गई सभी रचनाओं में से चयनिय रचना को प्रकाशित की जा रही है। सभी रचनाएं नीचे दी जा रही है। जरूर पढ़ें
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माँ शारदे को नमन है।
साहित्य की बात हरे कृष्ण के साथ--2 के लिए प्रेषित
शीर्षक:-काल गति
विधा:-दोहा
कुटिल काल की नजर से,वक्त हुआ विपरीत।
आज दूर से देखता,खड़ा मीत को मीत।।1
कुदरत हुई उदास क्यों,समय हुआ क्यों वक्र।
त्राहि-त्राहि चहुँ दिशि मची,उल्टा चलता चक्र।।.2
सब कुछ उल्टा हो गया,बदले रीति-रिवाज।
जप-तप-ग्रह पूजन बिना,पूर्ण न होवें काज।।3
चलता-फिरता आदमी,जाय काल के गाल।
आया ऐसा विश्व में,कोरोना बिकराल।।.4
गलती गिन निन्यानवे,की सौवें पर घात।
अनाचार वश सृष्टि ने,जूठी कर दी वात।।5
विनती 'राज' समाज हित,नाथ करो उध्दार।
दया दृष्टि इक डाल दो,होहि सुखी परिवार।।6
(स्वरचित)
राजेश कुमार राठौर 'राज' पूरनपुर पीलीभीत (यूपी)
*पेश--ए-खिदमत है एक ताजा तरीन गजल*
**बहर---212---212---212---212**
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*"बाद मुद्दत के तुम याद आने लगे!*
*रोज तुम तो हमें भी जगाने लगे!1!*
*एक अरसा हुआ तुम को' देखे हुए!*
*दिल ने' चाहा तो' तुम मुस्कुराने लगे!2!*
*चेत सकते नहीं वो मगर क्या करें!*
*जो न बोलूं तो' वो लड़खड़ाने लगे!3!*
*ये है' कैसी फिजां कौन जाने यहां?*
*आज आके जरा आजमाने लगे!4!*
*क्योंकि वो तो जमाने को गिनते नहीं!*
*हम सफर बन सही, गुनगुनाने लगे।5!*
*खैर छोड़ो कसम है तुझे यार की!*
*आज किस्मत थी' वो सब सुनाने लगे!6!*
*सुन के सुख-दुख सखे,धीर देते मुझे!*
*आसियां हम भी' मिल के सजाने लगे!7!*
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✍️ डा.के.के.चौधरी'वियोगी'-
पूर्णिया, बिहार
शीर्षक-"प्रेम में भगवान मिलते "
प्रेम में भगवान मिलते,
दुनियादारी भटकाती.
प्रभु का भरोसा छोड़कर,
अब किस द्वारे जाये हम!
इच्छायें बहुत है चंचल मन की,
झूठ- सच के भंवर में गोते खाते
कब मंझधार में फंस जाये?
कोरोना का कहर आज
विकराल रूप में फैला,
चारों ओर हाहाकार मचा.
दवा- हवा का टोटा पड़ा,
सांसत में फंस गयी जान.
कालाबाजारी जोरों पर
मौत को बेच रहा इंसान.
अब क्या होगा भगवान?
आप अंतर्यामी हो,
सब कुछ जानते हो!
इस पीड़ा को हरो प्रभु.
सद्बुद्धि दो इंसान को
ताकि इंसानियत बची रहे.
प्रेम में भगवान मिलते,
दुनियादारी भटकाती.
✍️ स्वरचित कविता
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर
राजस्थान
शीर्षक:- प्रारब्धवश.
शीर्षक:- प्रारब्धवश.
जन्म मृत्यु के अनंत चक्र
में मनुष्य घूमता रहता है
प्रारब्धवश ही जीवन में
सुख दुख पाता रहता है।
सकारात्मक सोच से ही
जीवन आनंदमय होता है
नकारात्मक भाव चिंतित
होकर कुंठा मय होता है
ज्यादातर को नसीब नहीं
वह रब ने दिये उपहार है
बहुत मिला है जीवन में
जिसके हम शुक्रगुजार हैं
सार्थक जीवन मूल्यों को
पाने वाले विजयी होते हैं
नये कौशल से सफलता
पाकर चिंरजीवी होते हैं।
एम.एल. नत्थानी
रायपुर, छत्तीसगढ़
*संघर्ष*
विधा : कविता
जिंदगी कितनी मिली
ये कभी मत सोचो।
जिंदगी में क्या कुछ
तुम्हें मिला ये सोचो।
जिंदगी मिली है तुम्हें
कुछ करने के लिए।
इसे तुम यूही मत
बिना वजह के गवाओं।।
जिंदगी को तुम समझो
और इसका मनन करो।
फिर मायाने जिंदगी के
लोगों के जहान में बैठाओं।
कर सके अगर ये काम
तुम अपनी जिंदगी में।
तो तेरा मनुष्य जन्म
सफल हो जायेगा।।
गिरता रहा उठता रहा
जिंदगी को चलता रहा।
रुक अगर गये होते तब
विपत्तियों से हार कर।
तो जिंदगी को अबतक
हम खो चुके होते।
बिना लड़े परस्त होना
जिंदगी की बुझदिली होती।
इसलिए जिंदगी के साथ
निरंतर संघर्ष करता रहा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई
05/05/2021
*।।समस्या पूर्ति रचना।।*
*।।प्रदत पंक्ति।।*
*।। कब विचलित होते हैं।।*
1
जो मनुष्य कभी रुकते नहीं
जो उत्साह चलित होते हैं।
वो निसंदेह पाते मंजिल को
हर कार्य फलित होते हैं।।
प्रेरणा ऊर्जा के बन जाते
हैं वे इक़ शक्ति पुंज।
ऐसे व्यक्ति किसी पगबाधा
से *कब विचलित होते हैं*।।
2
जो व्यक्ति सद्भावना समभाव
में सदैव ही लिप्त होते हैं।
कर्म श्रम के पूजन मन्त्र में
ही सदा निर्लिप्त होते हैं।।
निखर संवर कर बन जाते
अद्वितीय व्यक्तित्व उनके।
अपने जोशो जनून से पूर्ण
वो *कब विचलित होते हैं*।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
........हनुमान जयंती..........
(प्रार्थना)
आप हैं शाश्वत चिरायु,रसिक प्रभु के भक्त हैं।
अधखुले नयनों से प्रभु की ,भक्ति में अनुरक्त हैं।।
हस्त में शोभित गदा,एक हस्त पर्वत द्रोण है।
आप ही सब व्याधियों के एक ऐसे तोड़़ हैं ।।
***********************************
दूर होती आपदाएं,आपके ही धाम से।
आज है एक रूप तेरा, बालाजी के नाम से ।।
भूत,प्रेतादिक बलाएँ, भागतीं हुँकार से ।
आज ऐसी है परिस्थिति, विनय है सरकार से ।।
*******************************†*****
क्यों नहीं हैं याद आती,भूले अपनी शक्तियां ।
मानता हूँ, मै अधम हूँ, की बहुत सी गलतियां ।।
'व्यथित्' हूँ सेवक तुम्हारा,आज रक्षा कीजिए ।
विश्व पर काली घटाऐं,नाश् उनका कीजिए ।।
************************************
दृश्य हो या हो अदृश् न वो बचा है आपसे ।
ये चुनौती दे रहा सबको,बचाओ ताप से ।।
हैं सिसकते प्राँण,वायु खींच ली है दुष्ट नें ।
आज इसको फिर हनो,हनुमान सब हैं कष्ट में ।।
*************************************
रचना
शशिकान्त दीक्षित (व्यथित्)
फतियाँपुर, हरदोई, उ.प्र.
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बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाऐं
ReplyDeleteसभी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक शानदार सृजन प्रस्तुति के लिए सभी विद्वत कविवर को सहृदय बधाई नमन!
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