गंगावास तालाब
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★:-बाड़मेर मालाणी क्षेत्र के नाम से विख्यात इसी के छोटे से कस्बे गंगावास में स्थित कृत्रिम गवाई तालाब इनकी बुनियाद (नींव) की उचित प्रमाणिक पुख्ता जानकारी तो नहीं मिलती है। लेकिन बुर्जुगों द्वारा बताया जाता है। कि आज से लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व १६६६ में एक महान व्यक्ति गंगाराम ब्राह्मण की स्मृति में इस पोखर का उदय हुआ था। यह तालाब अतिप्राचीन है।
★:-यह तालाब बाड़मेर का सबसे बड़ा सरोवर माना जाता है। इनका वास्तविक नाम तो गंगाराम तालाब था। धीरे धीरे गवाई तालाब ओर स्थानीय भाषा में इन्हें {गंगाओ} तालाब के नाम से पुकारते है।
जहां मै और मेरा ग्राम भाग्यवान है पूर्वजों द्वारा पदत तालाब को सूखने मैं दशकों दशक बीत गए हैं।
★:- पूर्वजों द्वारा कहा जाता है, कि यह तालाब सिर्फ दो बार छलका है।
ओर इस सरोवर की गहराई लगभग 50 फीट हैं। बीस फीट छोड़ी पाल है, पाल छोड़ी होने से सुरक्षा की दृष्टि से अब तक यह सुरक्षित है। पानी की समता को मापने का कोई औपचारिक मापदंड नहीं है। (1956) छप्पनिया अकाल के दौरान तालाब सूखने की कंगार पर था। उस समय तालाब की खुदाई भी हुई थी। जबकि तालाब की गहराई अच्छी खासी है। सम्पूर्ण खाली तो नहीं हुआ था। ओर हर दो तीन वर्षों मैं जीर्णोद्धार भी हो रहा है।
★:-तालाब के ठीक केन्द्र बिन्दु पर स्थित एक {टापू} जिन्हें स्थानीय उच्चारण में {देवल} कहा जाता है।इसी देवल पर 2004 के समय मिल्ट्री सिपाहियों द्वारा ट्रेनिंग उद्देश्य एक पिक्चर भी बनाई थी। देवल के 16 खम्भे है सभी एक समान है। ओर इस इमारत पर कलाकृतियां का चित्रण भी अलंकृत है।
★:-इस विशालतम पोखर के किनारे पैराग्लाइडिंग का कार्य भी किया जाता है। तालाब में पानी की आवक का ओरण यहां पर जोधपुर के समर्थ शर्मा जो की पैराग्लाइडिंग से करीब 3000 फीट ऊंची हवाई यात्रा करवाते है। शर्मा जी करीब 15 वर्षों से पैराग्लाइडिंग हैंग ग्लाइडिंग कर रहे हैं। साथ ही अब वे गंगावास को पर्यटन स्थल बनाने के लिए भरसक प्रयासरत है। गवाई तालाब इस स्थान पर आने के लिए हजारों की तादाद में लोगों की भीड़ उमड़ रही है। तरसखाते है इतना खुला वातावरण है, जो की दो-तीन km.की परिधि में फैला गोचर अगर इस ओरण को पोकरण का मिनी रण कह दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
★ पशु पक्षी अपनी प्यास इसी तालाब से बुझाते हैं।
★:- त्योहारों में गणेश चतुर्थी मूर्ति विसर्जन ,पूजा के फुलों का विसर्जन भी इसी तालाब में किया जाता है।
★:- जलझूलनी एकादशी को भी यहां विशाल मेला लगता है।
★:- यहां तालाब किनारे अनेकों प्रकार के मंदिर स्थित है, जैसे जैन धर्म, के सतीमाता
भोमिया जी, की छतरी, गोगाजी का चांतरा, खेतपाल जी का थान, तालाब द्वार के ढा़ल में रामदेव जी का मन्दिर, ओर मुस्लिम समुदाय का मकबरा आदि मौजूद है।
★:- तालाब के ढलते द्वार भोमिया जी वाटिका भी बनी हुई है, जो की कई तरह के पैड़ -पौधे लगे हुए हैं।
★:- यहां अनेक तरह के शिलालेख भी मौजूद है।
★ साइबेरियन सारस (कुर्जा)
यहां कुर्जो का बड़ा पड़ाव स्थल भी है।
यहां प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में देशी-विदेशी सैलानी कुरजां का सैलाब आता है। कुरजां सुबह 5 बजे से गांव के स्थानीय खेतों के उपर कुर्ऊ कुर्ऊ आवाज के साथ उड्डयन करती है। ओर संध्या काल 8 बजे तक पुनः अपने स्थान पर पहुंच जाती है। दरअसल कुरजां सितंबर के पहले सप्ताह में करीब पांच सौ मील का सफर तय कर के यहां तालाब में पहुंचना शुरू हो जाती है। ओर नवम्बर में इनकी संख्या करीब हजारों की तादाद में हो जाती है।इन पक्षियों का पसंदीदा खाना भरपूर मात्रा में यहां उपलब्ध हो जाता है खेतों में मोठ, मूंग, बाजरा,ग्वार,ज्वार वैकर घास, इत्यादि।
इसी के साथ यह गांव फिर इन पक्षियों की आवाज के बिना सूना हो जाता है और आने वाले शीत ऋतु का इंतजार करता है, यह तालाब, ये चुग्गाघर फिर से इन परिंदों की आवाज के साथ आबाद होने को बेताब होकर इनका बेसब्री से इंतजार करते हैं..!
★:- गौरतलब है कि इस तालाब के लिए सरकार द्वारा कोई खास पहल नहीं की है।
★:- लेकिन चिंतनीय कि बात यह है कि वर्तमान में तालाबों की निरंतर कमी होती जा रही है लगता है हम तालाबों के महत्व को भूलते जा रहे हैं।
🙏धन्यवाद🙏
*शुभेच्छु:- त्रिलोक सेजू गंगावास
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