अत्याचार विषय पर बहुत ही मार्मिक सृजन हेतु आ0 कवि जबरा राम कंडारा को बहुत बहुत बधाई। नीचे सम्पूर्ण है जरूर पढ़ें
अत्याचार.
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मानव की मानवता मर गई, बिगड़ रहा व्यवहार है।
निजी स्वार्थ लगा साधने, करता अत्याचार है।।
मां-बाप की पड़ी नही अब,लापरवाही करता है।
अच्छी बात का जिक्र करे,वो तुरन्त बिफरता है।।
नही दवाई सही खाने को,नही सेवा उपचार है।
मानव की मानवता मर गई,बिगड़ रहा व्यवहार है।।
मजदूरों से घटिया भाषा,ज्यादा काम कराते है।
पैसे नही समय पे देते,वो रहते चक्कर लगाते है।।
कुछ पैसे काट खा जाते,ठग लेते ठेकेदार है।।
मानव की मानवता मर गई,बिगड़ रहा व्यवहार है।।
सुनते अखबारों में पढ़ते,खबरें सदा अखरती है।
दहेज की बातों से हजारों,बहिन-बेटियां मरती है।।
स्वार्थ लोलुप प्रवृति से,कोई जाता जीवन हार है।।
मानव की मानवता मर गई,बिगड़ रहा व्यवहार है।।
मासूमों के दर्द की बातें,सुख-चैन हर लेती है।
बलात्कार की घटनाएं,दिल को दहला देती हैं।।
नारी को मान का खतरा,पनपा दुर्व्यवहार है।।
मानव की मानवता मर गई,बिगड़ रहा व्यवहार है।।
पशुओं पे न ध्यान किसी का,घूम रहे आवारा है।
दुधारू की सेवा करते,सांड का कोई न सहारा है।।
पशुप्रेमी घास डालते,जहाँ खड़े लोग हजार है।।
मानव की मानवता मर गई,बिगड़ रहा व्यवहार है।।
इंसानियत कोने में छुप गई,सच्चाई सिसक रही है।
अपनापन गया होली में,मानवता खिसक रही है।
छल-कपट का साम्राज्य अब,ठगी बनी दमदार है।
मानव की मानवता मर गई,बिगड़ रहा व्यवहार है।।
---- जबरा राम कंडारा
रानीवाड़ा।जिला-जालोर।राजस्थान
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