प्रेम बंधन अनमोल बंधन-उषा जैन
शीर्षक- प्रेम
प्रेम स्नेह प्यार
प्रेम बंधन अनमोल बंधन
बांधता एक डोर से
प्रेम हैं माता-पिता
प्रेम भाई बहन है।
प्रेम ही तो कृष्ण है
अमर है राधा का प्यार
प्रेम की अलख जगा
हो गई मीरा दीवानी
प्रेम तो धरा गगन है
निश्चल प्यार लुटा रहा।
प्रेम ही तो जीवन साथी है
प्रेम पथ पर दोनों मिलकर
साथ एक दूजे के चल रहे
प्रेम ही संतान है
दिल के टुकड़े होते हरदम
आंखों के होते नूर हैं ।
प्रेम मन की छुअन है
आंखों से झलकता प्यार है
स्नेह भंवरों को फूलों से
प्रेम करते पशु पक्षी भी उनको
जो उनसे करते प्यार है
प्रेम से ही संगीत में सुर है है
वरना अधूरा राग है है।
चाहे कुछ समझे ना समझे
प्रेम की भाषा सब समझें
प्रेम बिना संसार अधूरा
एक बंजर रेगिस्तान है
सृष्टि के जर्रे जर्रे में
प्रेम पल्लवित हो रहा
ईश्वर के इस संसार में
प्रेम ही सरताज है।
मेरी कलम से🖋
उषा जैन कोलकाता
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