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अत्याचार
जीवन की क्या कहानी सुनाऊं मैं तुमको ऐ दोस्त ।
चारों तरफ शोषण का मकड़जाल बिछा हुआ लगता है ।।
मंहगाई भ्रष्टाचार और हठ धर्मी का ताज दिखता है ।
आम इंसान आज चाहर दिवारी में आज बंद दिखता है ।।
जिनके पास पैसा नहीं उनका शव भी बेकद्री की भेंट चढ़ता है ।
आज के अस्पतालों में इंसान लगता है बेमौत मरता है ।।
कोरोना त्रासदी के संग कितनी मजबूरियां भी साथ लाया है ।
आज की जिंदगी में इंसान और जानवर में फर्क नहीं लगता है ।।
लोग पैसे के बल पर खरीद लेते हैं सरेआम कानून को भी ।
आम आदमी तो आज घर से बाहर निकलते भी डरता है।।
एक तरफ कोरोना का दंश दूसरी तरफ जिन्दगी की जंग ।
उन हालात के मारो को देखो जरा जहां इंसान रो भी नहीं सकता है।
राजनीति की चौखट पर तो गरीब बलि की वेदी पर चढ़ता है ।।
जिन्दगी किसी मजबूर की देखो जहां जिस पर जमाना हंसता है ।
अत्याचार सह सह कर हम इस क़दर गुमशुदा हो गये ।
लगता है ज़माने की रोशनी में अपना चेहरा भी बेगाना लगता है।
लोग आपको बदनाम करने लगे और आप कुछ कह भी न सकें।
इससे बढ़कर जिंदगी का ज़ख्म क्या और भी गहरा हो सकता है।।
बदनामी का दाग जो लगा चेहरे पर जब गहरा हमारे ।
लगता है आज अत्याचार से रिश्ता आज सा पुराना लगता है।।
ताउते तूफान की जद में आकर डूब गए जहां शहर के शहर।
आज लगता है चाचा पर ताऊ का दबाव कुछ पुराना सा लगता है ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कण्डेय
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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