6/13/21

डर :- अंजू व रत्ती

डर :- अंजू व रत्ती- बहुत ही सुंदर सृजन करने हेतु आ0 अंजू व रत्ती जी को बहुत बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनाएं💕

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डर :- अंजू व रत्ती

कभी बहुत सी आवाज़ें,

कभी बहुत सा कलरव,

कभी दबी सी चीखें,

कभी सहमी सी सिसकियां, 

भूली नहीं हूं मैं,

जो भी सुना,

सहा और समझा

माँ की कोख में,

वही डर आज भी

विद्यमान है मेरे 

मन मस्तिष्क की

गहराई में,

आज भी मैं

औरत होने का

खामियाज़ा भुगत रही हूँ,

कभी बेटी बनकर

कभी बीवी बनकर,

कभी माँ तो कभी 

प्रेमिका बनकर।

कब मुक्त होगी

सम्पूर्ण नारी जाति,

नारी होने के डर से....


✍ अंजू व रत्ती

       होशियारपुर।


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5 comments:

  1. " कब मुक्त होगी नारी जाति ,नारी होने के डर से! " आदरणीया कवयित्री श्रीमती अंजु व रत्ती जी आप जैसे विद्वान को इस तरह का लिखना क्या सुन्दर सार्थक लगता है ? नारी हीं जगत में सर्वोपरि है! मुझे इस प्रकार की बातें झूठी और निरर्थक लगती है ।आजकल की लड़कियों को हौसला बुलंद करनेवाली कविता लिखे , जो सूर्य, चंद्रमा, मंगल ग्रह पर जाने के लिए तुरंत उड़ान भरने लगे !जी,सादर नमन ।

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    1. आ0 अंजू व रत्ती के द्वारा प्राप्त टिपण्णी के अनुसार
      आदरणीय विमल जी हार्दिक आभार कि आपने अपना अमूल्य समय और विचार दिये। आपने बिल्कुल ठीक कहा है किन्तु आज भी कूड़ेदान, बाल्टियों और गंदगी के ढ़ेर पर जब कन्या के भ्रूण को कुत्ते नोचते हैं

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    2. आदरणीय विमल जी हार्दिक आभार कि आपने अपना अमूल्य समय और विचार दिये। आपने बिल्कुल ठीक कहा है किन्तु आज भी कूड़ेदान, बाल्टियों और गंदगी के ढ़ेर पर जब कन्या के भ्रूण को कुत्ते नाचते हैं तो मैं ही नहीं कोई भी जज़्बाती इंसान ऐसा सोच सकता है।

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  2. इस में निरोल कल्पित क्या है श्रीमान अगर हालात समूल बदल गए होते तो आज नारी को मरने के कई कई साल बाद तक न्याय की बाट न जोहनी पड़ती निर्भय की तरह । बाहर से बदलाव की हामी भरने वाला समाज भीतर से आज भी वैसा ही है

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  3. आदरणीय धन्यवाद आपने बहुत सही कहा।

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