रक्षाबंधन पर भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आयोजित की गई कविसम्मेलन:- सिद्धेश्वर
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" कविता के माध्यम से जीवंत हो उठती है,
रक्षाबंधन पर्व ! " सिद्धेश्वर
" मेरी बहना मेरे घर की, चंदन और अभिनंदन है तू !"
"भाई-बहन के दिलों के बीच आई खामोशी, उदासीनपन और शिकवा-शिकायत को, दूर करने का सार्थक और सकारात्मक पर्व है रक्षाबंधन !जीवन में सुख दु:ख आते जाते रहते हैं और कविता उसकी आहट सुना करती है! यह रक्षाबंधन एक भावना, एक संदेश के माध्यम से, भाई बहन के प्यार के उत्कर्ष को स्पर्श करती है, जिसका माध्यम होता है शब्द ! शब्द यानी कविता की जीवंत भाषा का एक सशक्त माध्यम, जो अपने चंद पंक्तियों में ही भाई -बहन के प्रेम को जाने-अनजाने उदघोषित कर देता है ! यानी कविता के माध्यम से जीवंत हो उठती है, रक्षाबंधन पर्व!! "
रक्षाबंधन के अवसर पर आयोजित " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " का संचालन करते हुए, उपरोक्त उद्गार संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने व्यक्त किया है !
चर्चित कवयित्री डॉ आरती कुमारी (मुजफ्फरपुर ) की अध्यक्षता में, कवि सम्मेलन का आरंभ, लोकप्रिय संगीतकार और गायक सत्येंद्र संगीत के मधुर भोजपुरी गीतों से हुआ - " राखी हर साल कहेले सवनवा से, भैया बहनी के हरदम रखिय ख्यालवा में !" इसके बाद सिद्धेश्वर ने एक नज़्म प्रस्तुत किया - " मेरे घर का कुंदन है तू !/पवित्र प्रेम का बंधन है तू !/मेरी बहना मेरे घर की !/ चंदन और अभिनंदन है तू !!"
इसके बाद तो एक से बढ़कर एक कविताओं का जो अनवरत सिलसिला चला, वह लगभग तीन घंटे तक चलता है ! राज प्रिया रानी ने- " ओस की पहली बूंद भैया, शीप बन मैं इठलाऊंगी, माथे का सिकन चुरा के तेरा, शगुन थाल मैं बन जाऊंगी !" आरती कुमारी ने -"सावन में लाई राखी त्यौहार पूर्णिमा, भैया के माथे सजती रोली लालिमा ! और दुनिया की नज़रों से बचाकर साथ रखना है ! /मेरी चाहत का ख़त हो तुम छुपाकर साथ रखना है !"
हरि नारायण सिंह हरि ( समस्तीपुर ) ने - " सरस भाई बहना का प्यार, अनोखा है यह भी संसार !"/ मधुरेश नारायण ने -" राह निहारती बहना बैठी, हाथ में लिए राखी का थाल, मन ही मन कर रही प्रार्थना, चमके सदा भाई का भाल !"/ कमल नारायण ने -" चल राजेश जैन राही ने - " बदलते वक्त की छोटी सी बस इतनी कहानी है !,बहुत तकलीफ है दिल में, भरा आंखों में पानी है !"/ अजज़ उलहक ने - " आसमां ताने कोई,जमीं पे बिठाए दुनिया, हम तो फिरते हैं यहां, सर पर उठाए दुनिया !"/ डॉ मेहता नरेंद्र सिंह ने - " भारत अपने देश में है पर्वों की खान, रक्षाबंधन पर्व पर रखते हैं हम आन !!"
पूर्णियाँ के युवा कवि व साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश ने - "मेरे हर ख्वाबों की दुनिया के तुम ही एक सहारा हो, स्नेह भरी एक धागा लेकर आई हूं, आओ मेरे भैया मैं राखी लेकर आई हूँ !" से अपनी बेहतरीन प्रस्तुति देकर कार्यक्रम में सभी को प्रफुल्लित कर दिया।
ओंकार सिंह विवेक ने- " जटा खोलकर रूद्र ने, छोड़ी जिसकी धार,! नमन करें उस गंग को आओ बारंबार !"/कौशल किशोर ने - " बहन बांध दे रक्षाबंधन ! समर में जाना है मुझे !"/रेखा सिन्हा ने -" न आहतट, न कोई खबर ! आज आई अचानक मगर !"/संतोष मालवीय (म.प्र.) ने "कैसे भूल जाऊँ उन्हें जो पत्थर की लकीर हो गये!, मेरे लिए यारों वे कश्मीर हो गये !
डॉ बी एल प्रवीण (डुमरांव )ने - " उजालों का अंधेरा दीख रहा है !, नभ भी है घनेरा, दीख रहा है !/ ढूंढता था महलों में सुख कभी, झोपड़ी में सवेरा दीख रहा है !"/अंजू भारती (नई दिल्ली )ने - " रक्षाबंधन का दिन सुहावना!, त्यौहार भाई बहन का पावन !!"/ अभिलाषा कुमारी ने -" कभी सोचा हम क्यों पढ़ते हैं ?"/ उषा ओझा ने-" जलधर, स्याह गेसुओं के बीच, नील में नीलम घुलती !"
ऋचा वर्मा ने - " रक्षाबंधन के पावन अवसर पर, मर्माहत कर गई मासूम बच्ची की उदासी !"/कालजयी घनश्याम ( नई दिल्ली) ने- " सरहद से आ भैया, बैठे लिए राखी, मन है उदास भैया !"/ डॉ सविता सिंह मागधी ने - "राखी का नहीं कोई मोल, राखी तो माँगे बस स्नेह के बोल.!"/रंजु सिन्हा ने - " राखी का थाल सजाए बैठी, बहन देखती राह है !/ रामनारायण यादव( सुपौल )ने "आंगन में पड़े सावन की फुहार, उमडल नदिया अब चले पतवार, आई रक्षाबंधन का त्यौहार !"
डॉ कुंवर वीर सिंह 'मार्तण्ड '( कोलकाता )ने "हम स्वर्ग धरा पर ला सकते, पानी में आग लगा सकते हैं!"/यासमीन मूमल ने - " बहनों की आवाज पर आ जाना हर बार, दुश्मन आए सामने या आए सरकार !"/ रमेश कँवल ने - " मैं अपने होठों की ताजगी को, तेरे होठों के नाम कर दूं !"/ कमल नारायण ने -" चल कविता बहना के गांव ! रुनझुन रुनझुन से चलकर गीत प्रीत के गाती होगी, लेकर राखी हाथ में, भैया को याद दिलाती होगी !"
इसी तरह रक्षाबंधन से संदर्भित, एक से बढ़कर एक कविताओं का दौर चलता रहा ! मौका था फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर, ऑनलाइन " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " का ! संयोजक सिद्धेश्वर के संचालन में, लगभग तीन घंटे तक चली इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में देश भर के, बीस से अधिक कवियों ने अपनी भागीदारी दी, जिसे देश भर के चार सौ से अधिक दर्शकों ने देखा l"
ऑनलाइन कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि एवं निर्विन्ध्या के संपादक संतोष मालवीय (म.प्र. )ने कहा कि - " रक्षा बंधन पुरातन काल से चला आ रहा भारत का प्रमुख त्यौहार है! इतिहास और पुराणों में आता है कि औरंगजेब , बाबर, और अकबर को शांति और नारियों की रक्षा हेतु, रक्षा सूत्र भिजवाती थी, ताकि मुल्क में शांति कायम हो सके!"
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ आरती कुमारी ( मुजफ्फरपुर)ने यह भी कहा कि- "यह रक्षा सूत्र गुरु शिष्य के बीच , पति पत्नी के बीच, एक समुदाय का दूसरे समुदाय के बीच या फिर प्रकृति की रक्षा के लिए वृक्षों को बांधे जाने वाला है। इस कार्यक्रम में रचनाकारों ने जो साहित्यिक छटा बिखेरी हैं उन्हें तीन रंगों में विभाजित कर सकते हैं। एक रंग भाई बहन के बीच के प्रेम, स्नेह, दुलार, आशीर्वाद , इंतज़ार, मनुहार, खट्टी मीठी यादों का है तो दूसरा रंग वह है जिसमें हमें अपनी पौराणिक कथाओं के माध्यम से अपनी शक्ति का भान होता है और हम जान पाते हैं कि नारी शक्ति के बिना पौरुष कितना अधूरा है। हमने देखा भी है कि कोरोना के दौर में बहनों ने अपनी भाईयों की मदद की है, जो हमारे लिए प्रेरणादायक है l रचनाकारों को लेकर सतत साहित्यिक सक्रियता बनाए रखने के लिए, इस ऑनलाइन के संयोजक सिद्धेश्वर जी सचमुच बधाई के पात्र हैं ! यह साहित्यिक कारवां भी, सामाजिक सेवा ही है !"
रक्षाबंधन उत्सव पर आयोजित इस कवि सम्मेलन में इनकी भी सहभागिता रही - " दुर्गेश मोहन, अपूर्व कुमाऱ, अलका वर्मा, महादेव मंडल, अनुभव रंजन, दीपाली, अमरेश कुमार, पूनम वर्मा, डॉ शिवनारायण, एकलव्य केसरी, आलोक चोपड़ा, मनोज उपाध्याय आदि !
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प्रस्तुत: ऋचा वर्मा (सचिव ) और सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )/भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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आशा है आप नीचे लिखे सभी कार्यक्रम से अवगत हो जाएंगे।
7:- साहित्य आजकल के द्वारा वर्तमान में "भाग लो इनाम जीतो" कार्यक्रम आयोजित की गई है। आप नीचे के वीडियो से जानकारी ले सकते हैं 👇👇
रक्षाबंधन के अवसर पर सभी कविवर की एक से बढ़कर एक बेमिसाल काव्य पाठ प्रस्तुति के लिए सहृदय बधाई संग अनंत शुभकामनाएँ ।
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