विशेष जानकारी पाएं

9/18/21

चले आओ कि अब बादल मुझे मजबूर करता है:- आशीष पाण्डेय

चले आओ कि अब बादल मुझे मजबूर करता है:- आशीष पाण्डेय

 

चले आओ कि अब बादल मुझे मजबूर करता है

मदन तन में मेरे कितने दहन को आज भरता है

मिले यदि इन हवाओं में मुझे खुशबू कभी तेरी

तो मन ये मान लो कुछ पल पीना रोये ठहरता है।।


चपलता आज चपला वह करे कितना इस गगन आ

शशी की चन्द्रिका बसती है जाने क्यों मेरे तन आ

रात की रागिनी बिखरी हुई है आज बदली सी

तेरी छवि गांठ कर ली है न जाने क्यों मेरे मन आ।।



सुनो अब सब्र का यह काल बीता सा मुझे लगता

कहीं इस प्राण से यह तन मिले हो खोखला रस्ता

बिछेगी चादरें तन पर क्या आओगे तभी बोलो

नयन यह थक गया प्रियतम तुम्हारा देखते रस्ता।।



मैं आहें रोज भरती हूं मैं राहें रोज तकती हूं

तुम्हें मैं याद कर साजन मैं आंखें खोल रखती हूं

तुम्हारे बात सारी सोचकर हंसती कभी रोती

चले आओगे इक दिन सोचकर यह अश्क पीती हूं।।

आशीष पाण्डेय

पता सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश

Sahitya Aajkal:- एक लोकप्रिय साहित्यिक मंच 👇💞 Sahitya Aajkal Youtube Channel link plz Subscribe Now ...💞👇Sahitya Aajkal Youtube से जुड़ने के लिए यहाँ click करें

 ...Subscribe Now...


Subscribe Now...


यदि आप भी अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहते हैं या अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो अपनी रचना या वीडियो टीम के इस Whatsapp न0- 7562026066 पर भेज कर सम्पर्क करें।

कवि सम्मेलन की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें




1 comment:

  1. विरह वेदना की सुन्दर मर्मस्पर्शी कविता के लिए आदरणीय कविवर को सहृदय बधाई ।

    ReplyDelete