कभी हम मुस्कुराते थे:- डॉ कमल गौतम
कभी हम मुस्कुराते थे,कभी वो मुस्कुराते थे
जब हम नजरें मिलाते थे, तो वो नजरें झुकाते थे
इन्हीं बातों में ना जाने कब, मैं तेरा ही हो गया,
जो अपना था पता ना कब, सपना बनके खो गया l
वो बारिश में तू आती थी,चाहे तू भीग जाती थी
मैं कुछ अपना सुनाता था, तू कुछ अपना बताती थी
न जाने कैसे यह उगता सूरज, बादलों में सो गया
जो अपना था पता ना कब, सपना बनके खो गया l
तेरे होठों की वो लाली, तेरे कानों की वो बाली
तेरी जुल्फों का यूं उड़ना, वो जीवन में थी खुशहाली
न जाने पूनम की रोशनी मैं भी, अंधेरा सा हो गया
जो अपना था पता ना कम कब, सपना बनके खो गया l
कभी लगता है तू आए, और आके मुझको समझाएं
फिर से तेरी नजरें, मेरी नजरों मैं खो जाए
समस्या क्या थी यह, मेरे जीवन का प्रश्न हो गया
जो अपना था पता ना कब, सपना बनके खो गया l
डॉ कमल गौतम
(कोटा) राजस्थान
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