9/3/21

तारे गगन से तोड़ लाऊँ साथ यारा दीजिए:- प्रो.मीना श्रीवास्तव 'पुष्पांशी

तारे गगन से तोड़ लाऊँ साथ यारा दीजिए:- प्रो.मीना श्रीवास्तव 'पुष्पांशी


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*ग़ज़ल*

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तारे गगन से तोड़ लाऊँ साथ यारा दीजिए।

आकाश में झिलमिल सितारे  एक तारा दीजिए।।


*तुम पास थे मेरे कभी अब आसमाँ में खो गये।*

*होता नहीं तुम बिन गुज़ारा फिर सहारा दीजिए।*


*जन्नत नहीं हूँ आज उनकी वो कहानी अब नहीं।*

*तारा बने क्यों दूर के तुम हक हमारा दीजिए।।*


*जाना नहीं उस बाग में वह नागिनों का बाग हैं।*

*डसतीं हमें हैं , दूर आकर प्यार सारा दीजिए।।*


*गुलदान भी ग़ुलज़ार था पर यूँ नज़र किसकी लगी।*

*कब से निहारूँ राह तेरी हाय कारा दीजिए।*


उड़ती नहीं अब वो पतंगे आसमाँ सूना हुआ।

ईटें हुई मँहगी सजन अब आप गारा दीजिए।


धीरे चली यह नाव मेरी है खिवैया दूर क्यों ?

'मीना' गगन से कह रही नहिँ नीर खारा दीजिए।।


       ✍️ प्रो.मीना श्रीवास्तव 'पुष्पांशी

ग्वालियर मध्यप्रदेश

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2 comments:

  1. *डॉ. मीना श्रीवास्तव की रचना प्रकाशित करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद , आपसे अपेक्षा है कि भविष्य में भी आपसे ऐसा ही सहयोग मिलता रहेगा*
    ए. के. श्रीवास्तव

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  2. बेहतरीन गजल के लिए आदरणीया को सहृदय बधाई तथा अनंत मंगलकामना ।

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