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10/13/21

ओ मातृ मेरी, तू सुनले:- अरुण चक्रवर्ती

 शीर्षक-ओ मातृ मेरी


ओ मातृ मेरी, तू सुनले मेरी

अब द्वार तेरे ही मैं आया हूँ

ये जीवनदान भी तो तेरा है

मैं  शीश  झुकाने  आया  हूँ ।1।


सब कहते हैं तू जग कल्याणि 

तू ही ज्ञान की देवी हंसवाहिनी 

मैं इक आस लेकर मैं आया हूँ

मैं अपनी व्यथा सुनने आया हूँ  ।2।


तेरे लिए हम सब बच्चे हैं

तू सब की  पालनहारी है 

जब जब विपत आन पड़े,

तूने ही तो की  रखवारी है । 3 ।


तू ही त्रिकुटा,चामुंडा  शैलपुत्री तू ही है

बन के कालरात्रि  दुष्टों  का  संहार करे

दे सुख,समृद्धि जीवन  को  उध्धार करे

माँ कात्यायनी रूप में सब पे उपकार करे । 4 ।


नवरात्र में घर- घर मे  तेरी ज्योत जले

मिट जाय तम,दुख खुशी के दीप जले

माँ सेवक आपका ज्ञान का दीप जलाओ

विनती करे अरुण आपसे दर्शन दे जाओ  ।5 ।

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✍️ रचनाकार-कवि अरुण चक्रवर्ती 

गुरसहायगंज कन्नौज उत्तर प्रदेश

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2 comments:

  1. साहित्य को मुखर करने मे ये मंच मील का पत्थर साबित होगा ।


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