शीर्षक :- " प्रकृति का सौन्दर्य "
चांद से मिलती शीतलता
सूर्य से अग्नि सी तपन
ये दोनों हैं साक्षात् देव
इनको कोटि-कोटि नमन
पूर्णिमा के दिन चांद की
छाई रहती, अद्भुत छटा
इसकी सुन्दरता के आगे
सबका ही घमंड घटा
चांद की निर्मल रोशनी से
लगता है कितना प्यारा गगन
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ये दोनों हैं .....................
अंधकार को दूर करके
सूर्य की किरणें करती हैं उजियारा
सुप्रभात का मनोरम दृश्य
लगता है बहुत ही प्यारा
सूर्योदय की मनमोहक लालिमा में
खिलता है सब ओर चमन
ये दोनों हैं ......................
आसमान में तारों के समूह का
कितना सुन्दर नजारा होता है
पूर्णिमा की अर्द्धरात्रि को
प्रकृति का सौन्दर्य प्यारा होता है
सब जीवों की विश्रामावस्था में
लगता है सब ओर अमन
ये दोनों हैं .......................
सभी ग्रहों की सूर्य के
लगती रहती है परिक्रमा
मौसम व ऋतु चक्र का
बदलता रहता है कार्यक्रमा
प्रकृति का सौन्दर्य ही
लगता है मनमोहक, मगन
ये दोनों हैं ......................
अशोक कुमार यादव,
अलवर राजस्थान
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अति सुन्दर मनभावन सृजन के लिए आदरणीय को सहृदय बधाई! विमल कुमार, पूर्णिया, बिहार
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