11/1/21

अंधकार पर जयघोष करती हैं ज्योतिर्मय निर्झर सी अनुभूति देती हुई सिद्धेश्वर की कविताएं ! :- राज प्रिया रानी

साहित्य आजकल की साहित्यिक खबर:- 

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      " अंधकार पर जयघोष करती हैं ज्योतिर्मय निर्झर सी अनुभूति देती हुई सिद्धेश्वर की कविताएं !": राज प्रिया रानी 

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दीप तले अँधेरा सत्य ,नीति,धर्म,मर्यादा,नैतिकता, मानवीय मूल्यों व सदाचरण को  विस्मृत करने का प्रतीक है !": डॉ  शरद नारायण खरे 

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                        पटना ! 01/11/2021! "संचित  गिले -शिकवे  को दूर  हमें  भगाना है l /वर्तमान की दहलीज पर एक दीया जलाना है ll/अतीत का तम, हमारे भविष्य का रक्षक नहीं l/दीप श्रृंखलाओं की तरह हमें जगमगाना  है ll/ अंधेरी गलियों में / दस्तक दी तुमने !/वरना हथेली पर दीप लिए खड़ी थी मैं /दोस्तों को बहुत आजमा लिया मैंने !/ किसी दुश्मन ने मुझे  गिरने से संभाला है /तम  की कश्तियां डूबोने को हैं मुझको / रोशनी का दरिया / दिल में उतर आया है !!

/ रोशनी के लिए तू दीए में तेल बचा कर रख ! / तूफान बन कर हवा कब तक हमें डरायेगी ? "- जैसी दो दर्जन से अधिक  सिद्धेश्वर की कविताएं अंतर्मन के अंधेरे को दूर करने में कामयाब हैं और दीये के तले अंधेरा क्यों, के  संदर्भ को रेखांकित करती हैं! दीप की रौशनी में पिरोये भावपूर्ण ये शब्द और अंधकार पर जयघोष कर रही सिद्धेश्वर की कविताएं ज्योतिर्मय निर्झर सी अनुभूति दे जाती हैं।"

              भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के " अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर  ऑनलाइन आयोजित सिद्धेश्वर के एकल पाठ  की अध्यक्षता करते हुए राज प्रिया रानी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये !

                        इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. शरद नारायण खरे (म. प्र. ) ने कहा कि - " दीप तले अंधेरा इसलिए होता है क्योंकि हम अपने अंतर्मन को  सत्य,नीति,धर्म,मर्यादा,नैतिकता,मानवीय मूल्यों व सदाचरण से आलोकित करना विस्मृत कर जाते हैं।वस्तुत: हम केवल परिवेश व घर को ही आलोकित करते हैं।केवल घर को ही बुहारते हैं,पर न तो हम अपने अंतर में उजाला बिखेरते हैं,न ही वहां की कलुषता दूर करते हैं।यही कारण है जो कि दीप तले अंधियारा वैसा का वैसा ही रह जाता है।जबकि पर्व हमें सद्आचरण करना सिखाते हैं।यही दीपोत्सव का संदेश भी है।


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                   इस  ऑनलाइन मासिक गोष्ठी के दूसरे सत्र में "दीपावली: दीए के तले अंधेरा क्यों ?" विषय पर मुख्य वक्ता  सिद्धेश्वर ने अपनी डायरीनामा में कहा कि -"  

हमारी कथनी- करनी में जमीन आसमान की दूरी  बढ़ती जा रही है ? क्यों दीपावली में महलों की ऊंचाइयों को रोशनी पहुंचाने वाल" दीया ",  झोपड़ियों के अंधेरे को मिटा पाने में सक्षम नहीं हो पाता ? लाखों- करोड़ों की आतिशबाजी करने वाला दौलतमंद महापुरुष किसी गरीब, असहाय,  लाचार के हाथों से उसके हाथ का झुनझुना भी छीन लेने को बेकरार क्यों होता है ? क्यों लक्ष्मी की सवारी पर मौज मना रहा वैभव पुरुष अपने पड़ोसियों के घर का अंधेरापन नहीं देख पाता ? एक विचारणीय प्रश्न यह भी  है कि अपने पड़ोस में जगमगा रही दीपों की श्रृंखला और प्रकाशमान घरों के बीच अंधेरे में डूबे छोटे-छोटे घरों और दरवाजे पर हमारी नजर क्यों नहीं पहुंच पाती ? क्यों लक्ष्मी अमीरों पर ही मेहरबान होती हैं, गरीबों पर नहीं ? और बेईमानों दोगले चरित्र वालों  के लोगों पर ही मेहरबान होती हैं, मेहनतकश, ईमानदार,अभावों से जूझ रहे इंसानों पर नहीं ? तभी तो कहते हैं कि दीपावली में भी दीए के तले अंधेरा है !"

              डॉ. पुष्पा जमुआर ने कहा कि -" दीपावली के पावन पर्व पर आत्मशोद्धित होकर दीप पर्व की

का उत्सव मनाएं! यही संकल्प रहे ।यानि "यह सदा याद रखना चाहिए कि "बुरा जो देखन मैं चला,  मुझ से बुरा न कोई! "जिस दिन हम सब यह बात समझ कर आचरण करेंगे, उस दिन दीये के तले अंधेरा क्यों ? का जबाब खुद व खुद हृदय की कलुषता , छल कपट, ईर्ष्या, जलन का अंधकार भस्म होकर उजाला फैल जाएगा !!

               ऋचा वर्मा के अनुसार -" पर उपदेश कुशल बहुतेरे'। हम ज्ञान तो बांटते चलते हैं पर  अपनी निजी जिंदगी में इस ज्ञान का उपयोग नहीं करते हैं। हमारी लालसा है विश्व गुरु बनने की, परंतु अपने देश में ही हम गरीबी, भ्रष्टाचार ,शराबखोरी, नशाखोरी जैसी समस्याओं से हर दिन दो-चार होते रह रहे हैं। अगर हमें दहेज के विरोध में कुछ बोलने को कहा जाए तो हम उसके विरोध में आवाज उठा सकते हैं भाषण दे सकते हैं ,लेकिन दहेज लेने में सबसे आगे रहते हैं ! यही तो है दीया तले अंधेरा !"

                डॉ.  सविता मिश्रा मागधी ( बेंगलुरु )ने कहा कि"एक ओर 23 वर्षीय नीरज चौपड़ा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाकर देश का नाम पूरे विश्व में ऊँचा करता है। वहीं दूसरी ओर 23 वर्षीय आर्यन बाप के पैसों से ऐय्याशी करते हुए ड्रग्स के साथ पकड़ा जाता है। 

   नीरज के लौटने पर न तो मीडिया इतनी उल्लासित हुई और न ही जनता ने अपना प्यार दिखाते हुए उसके घर को सजाया। जबकि वह इस स्नेह का पूर्ण अधिकारी था। आर्यन के जेल से  लौटने पर मीडिया और जनता हर्ष से इस कदर पगला रही है मानो वह सीमा पर रणविजयी होकर लौटा हो।  क्या यह दीया के तले अंधेरा नहीं ?"

         राज प्रिया रानी ने कहा कि -"आज की बदलती सोच और अवधारणाएं कई विसंगतियों को भी पैदा कर रही हैं। भावनाओं को तार - तार कर देने वाली वीभत्स घटनाएं, बुद्धिजीवियों , महात्माओं के चरित्र पर उठ रहे सवाल एवं बड़े - बड़े  ओहदे पर बैठे महानूभावों पर लग रहे लांछन इस बात को सार्थक करते हैं। नाम तो लोग कमा ही लेते हैं, दुनिया की रफ्तार के साथ स्वयं को अव्वल मान बैठते हैं, लेकिन उनकी स्वयं में निहित बुराइयों से  पूरा मानव समाज कलंकित होता है!यही तो है दीए के तले अंधेरा !! गजानन पांडे (हैदराबाद) ने कहा-" कोरोना के कारण मजदूरों को गांव की ओर पलायन करना पडा । उनके हाथ से रोजगार छिन गया। वे आज मजबूर हैं, कल का कोई ठिकाना नहीं है।  वे कैसे दीवाली मनाएं ।"

                     जबकि इस मुहावरे के ठीक विपरीत डॉ. मीना कुमारी परिहार ने कहा कि -" दीया इसलिए जलाया जाता है कि भले ही अंधेरा जितना शक्तिशाली हो, स्थाई हो लेकिन उससे लड़ना तो होगा ही और हमें हमेशा लड़ते रहना होगा क्योंकि अंधेरे को कुछ क्षणों के लिए पराजित तो किया जा सकता है लेकिन उसको जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है। हम सभी दीया जलाकर अपने निश्चय के प्रति प्रतिबद्धता जताते हैं कि हम अंधेरे से लड़ते ही रहेंगे।"

              दीपावली :दीया तले अंधेरा, क्यों ?" के संदर्भ में,  जवाहर लाल सिंह ने अपनी एक लघुकथा भी प्रस्तुत की ! इनके अतिरिक्त डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, डॉ. सुनील कुमार उपाध्याय, संजय रॉय, अपूर्व कुमार, दुर्गेश मोहन,  पूनम कतरियार , राम नारायण यादव की भागीदारी भी रही l

📼📼📼📼📼📼 प्रस्तुति :ऋचा वर्मा ( सचिव)एवं सिद्धेश्वर( अध्यक्ष) / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 

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