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दीपोत्सव के उपलक्ष्य में-काव्य गोष्ठी:-
आज के इस भौतिकतावादी युग में,जहाँ ज्यादातर लोग धन-संपत्ति इकट्ठा करने की अंधी दौड़ में लगे हैं, वहीं कुछ लोग अपने सीमित संसाधनों के बल पर 'हिंदुस्तानी भाषाओं'के संवर्धन व संरक्षण में लगे हैं।'सुधाकर पाठक' एक ऐसे ही शख्स हैं,जो अपनी संस्था'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी'के माध्यम से न केवल'हिंदी' अपितु सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन का पुनीत कार्य,पिछले कई वर्षों से अनवरत कर रहे हैं।उनका मानना है कि यदि वाकई हिंदी को अपने देश की 'राजभाषा' बनाना है, तो हिंदुस्तान की सभी भाषाओं को साथ लेकर चलना पड़ेगा।केवल अंग्रेजी के विरोध के सहारे, भारतीय भाषायें अपना विकास नहीं कर सकतीं।
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श्री पाठक समय समय पर,अपनी संस्था के विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से,भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों, कवियों, लेखकों,अध्यापकों व छात्रों को प्रोत्साहित करते रहते हैं।कार्यक्रमों की इसी श्रृंखला में, रोहिणी दिल्ली(भारत) में,दीपावली के उपलक्ष्य में हिंदी भाषा की एक कवि-गोष्ठी का आयोजन, संस्था के सभागार में, दिनाँक 31-10-2021 को किया गया,जिसमें 30 से अधिक कवितायें ने विभिन्न विषयों पर अपनी-अपनी कवितायें पढ़ी।
आज की युवा पीढ़ी पर,यह आरोप लगाया जाता है कि वह अपने आप में ही मस्त रहती है।समाज में हो रही घटनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं है।इस काव्य- गोष्ठी में कविता पढ़ने वाले आधे से अधिक कवि युवा थे।युवा मन में प्रेम की हिलोरें उठना स्वभाविक है।ज्यादातर युवा कवियों की कविता का विषय प्रेम ही रहा।'अशोक चावला'की प्रेम पर लिखी गयी कविता की पक्तियाँ थीं-
'नैन फिर से भरे आपकी याद में
घाव हैं फिर से हरे,आपकी याद में'
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बेवफा गाजीपुरी, राजू खान,हिमांशु मिश्रा, संजय घायल,अमित अंनत, विनीत पांडेय, विनीत मिश्रा'अविरल' 'यशोदानंदन खुरापाती तथा सीमा शर्मा सागर की कविता का विषय भी प्रेम ही था।
मर्यादा पुरुषोत्तम'राम' के चरित्र पर भी कवितायें सुनने को मिली।समाज में कुछ लोग राम के अस्तित्व व उनकी मर्यादा पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।ऐसे लोगों को लताड़ लगाते हुए'मनीषा सांवली'कहती है-
'बहुत सरल है दोषारोपण, चाहे जितने दोष लगाओ
राम रहे मर्यादित,थोड़ा सोच-समझकर प्रश्न उठाओ'
मनोज मिश्र'कप्तान' व पुनीत पांचाल ने भी राम पर ही अपनी कविता पढ़ी।
दीपोत्सव के उपलक्ष्य में,इस कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया था।इसलिए 'दीपावली' विषय पर यदि कविता न होती,तो आयोजन कुछ अधूरा-सा रहता।कुमार राघव,कमलेश झा,मेघ श्याम मेघ व ज्ञानेंद्र वत्सल ने इस विषय पर अपनी कविता पढ़ी।ज्ञानेंद्र की कविता की पक्तियाँ थीं-
'मैं दीवाली का दिया हूँ, रातभार मुझको जलाना
पारना काजल हमीं से और पलकों पर लगाना'
इसके अलावा समाज में, गिरते मानव-मूल्यों पर भी कवितायें पढ़ी गयीं।युवा दोहाकार शिव सागर तिवारी का एक दोहा देखें-
'लालच ऐसा शत्रु जो रहता बहुत करीब
जिसके मन में आ गया,उसका फूटा नसीब'
इसी तरह से,अनुराग अगम की कविता की पंक्ति -
'या तो दुनियादारी रख,या अपनी खुद्दारी रख'
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इनके अलावा-अभी आज़मी, गोपाल गुप्ता, संजीव सक्सेना, शिव मोहर,गलपसा इदरीश, अभिषेक पांडेय, अमित कुमार,जबी उल्लाह, ज्योति मिश्रा, मोहम्मद फ़रहान, राकेश मिश्रा, प्रीति, रिंकू घायल,कृष्ण माल्या, डॉ सत्यवीर सिंह सत्य ,सीमा डोवाल व विनोद पाराशर ने भी अपनी अपनी कवितायें पढ़ी।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता 'सुधाकर पाठक' ने व कार्यक्रम का शानदार संचालन युवा कवि ज्ञानेंद्र वत्सल ने किया।
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*साहित्य आजकल टीम*
सुंदर आयोजन!
ReplyDeleteसहभागी सभी मित्रों को बधाई!��
बेहद शानदार .........
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