आवारा पशु
रो रहा है किसान आज
सिर पर रखकर हाथ
खड़ी फसलों को कर रहे
आवारा पशु बर्बाद ।
क्या कुछ सहने पर किसान
आज हो गया है मजबूर
बंजर हो गए वे खेत खलिहान
जहां फसलें होती थी भरपूर ।
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इन से छुटकारे का रास्ता
कोई नजर नहीं आ रहा है
इनका आतंक दिन-प्रति-दिन
बढ़ता ही जा रहा है ।
पता नहीं यह आवारा पशु
इतने कहां से हैं आये
इनकी उजाड़ से तो मेरे यारों
ऊपरवाला ही बचाए ।
इनकी रखवाली करके तो
किसान गए हैं हार
इनके बारे में जल्दी से जल्दी
सरकारें करें सोच विचार ।
✍️ भीम सिंह,
गांव देहरा,
डाकखाना हटवाड़,
उप तहसील भराड़ी,
जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।
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बढ़िया कविता। भीम सिंह जी को बहुत बहुत बधाई���� ��������������
ReplyDeleteबेहतरीन कविता के लिए आदरणीय कविवर को सहृदय बधाई!
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