शीर्षक:- शत्रु -डॉ•अचल भारती
सीमा पार
दिखाई देता
शत्रु
देश का
देश के सामर्थ्य को
बार-बार
चुनौती देता
विद्वेश-भरा
उगलता जहर _ _
पर
आंतरिक भू -भाग
फैले जो
सीमा के अंदर
उस खण्ड भी
होते हैं शत्रु
मक्खन लगाती भाषा से
जाल बुनते
जोर -शोर से
राष्ट्र के हित
नारा लगाते
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कंधा से कंधा मिलाते
साथ- साथ चलते
बड़े -बड़े वादे करते
हमवतनों को
खुमारी - तन्द्रा में सुलाते
देश का असली
मसीहा होने का
दावा धरते
पर
सरेआम लूटते ये
देश को
अप्रत्यक्ष
खोखला करते
होकरभी देश का
अस्तित्व देश का मिटाते
यूँ देश को
गुलाम बनाने का
एक और उपक्रम करते
संतुलित मूल्यों
व विचारों को
धकियाने की मुद्रा में
अपने ही शिर
बड़प्पन लाधे
अधिकार जमाते
वर्चस्व में
आकाशी -शब्दों की
दुनियाँ बनाते
झूठे भविष्य का
संसार गढ़ते
विनम्रता में
शिर नवाते
जगह - जगह से
राष्ट्र को
तोड़ने की वला का
कपट-पाठ पढ़ाते
अर्थ व शक्ति का
केन्द्र बनते
शान से जीते
आबाद हैं शत्रु |
ये राष्ट्र की गुलामी में
छुपे रहते हैं
किसी गुफा के अंदर
और चालाकी से
कर लेते सबकुछ पूरा
कभी
उन क्रूर-शक्तियों के होते पक्षधर
बनते उनके चापलूस- चाकर
अपने ही मुल्क के
होते ये शत्रु
आजाद मौसम में
ये आ जाते
गुफा के बाहर
और लग जाते
गुमनाम सोयी
परम्परा के नाम
आकाश- दीप जलाने
पुनः -पुनः
विसात बिछाते ये
बुद्धिया-दुकानदारी में
सौदेबाजी का
ओझर मकड़जाल लिए
बेशक
चाहते ये अपने लिए
स्थापित कर लेना
एक विशाल राज
अर्थ और शक्ति के
केन्द्र में मौजूद रहकर
ये गुलाम देश के
शासकों की तरह
निरंकुश हो
चाहते हैं
सत्ता -सुख की प्राप्ति
एक स्वतंत्र देश में
आक्रान्ताओं की तरह
फूट डालकर
राज करना
ये चाहते हैं
शासन - शक्ति की
आड़ में
स्वतंत्र किसी राष्ट्र को
बार-बार कुचलना
उसे लूटते- दबाते
कमजोर करना
व राष्ट्र को
आगे तक ले चलने का
दावा ठोकते रहना
साथ- साथ
स्वंय को
ब्रह्मा या खुदा का
औरस-जन्मा बताना
उनका अनुपूरक होना
सबके-सब
किसी अजूबे से
कम नहीं
परन्तु
ये तो शत्रु हैं
आजाद राष्ट्र के असली |
-डॉ•अचल भारती
सोहानी, मोरामा,
बांका, बिहार 813107
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बहुत सुन्दर रचना ! हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
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