मेरे प्रियतम तुम चले आना
मेरे प्रियतम तुम चले आना
मेरे प्राणों को गले लगाना
मुझमें कितनी बेचैनी है
इसे बयां करूं मैं कितने शब्दों में?
तुम्हारे प्रेम-विरह में कितनी आहत हूं
इसे बता नहीं सकती मैं लफ्ज़ों में
मेरे प्रेम की बगिया में, सावन आए
तुम ऐसी बरसात बन जाना
मेरे प्रियतम तुम चले आना
मेरे प्राणों को गले लगाना
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तुमसे मिलने की कितनी चाहत थी
हृदय में अजीब अकुलाहट थी
माना कि,मेरे इस ज़िद्द को तुमने पूरा किया
लेकिन उस मिलन में भी कितनी दूरी थी
मेरे प्रेम मिलन की मधुर बेला आए तो,
तुम प्रयाग का संगम बन जाना
मेरे प्रियतम तुम चले आना
मेरे प्राणों को गले लगाना
तुम्हारे गले लग जाऊं ऐसी चाहत थी,
लेकिन ,चाह कर भी कुछ कह न पाई,
इतनी मुझमें शर्माहट थी ,
वो गुज़रा वक्त भी कितना बेगाना था,
मेरे मिलन के क्षण ही,तन्हाई का बहाना था
मेरे जीवन के पतझड़ मौसम में,
तुम वसंत बन जाना
मेरे प्रियतम तुम चले आना
मेरे प्राणों को गले लगाना
तुम्हारे बाहों में मेरा जीवन गुज़रे
दुःख के बादल पल- भर न ठहरे
मुझे पता है कि ये सपने अधूरे रहेंगे
पर, मेरी ख्वाबों की दुनिया में पूरे रहेंगे
अपने प्रियतम पर न्योछावर,
इस पतंगे के लिए
तुम दीपक बन जाना
मेरे प्रियतम तुम चले आना
मेरे प्राणों को गले लगाना
--नीलम गुप्ता (परास्नातक छात्रा- बी.एच.यू)
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