अपनी बात
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कहां जाऊं ?किसे सुनाऊं?
पाने की चाहत होती की खूब पाऊं !
पर मेरी बदकिस्मती कि मैं जब सुनाता हूं अपनी दास्तान !
कोई हंस कर छोड़ देता है !
कोई बेवकूफ समझ कर झाड़ देता!
कोई पागल समझ कर अनसुनी कर देता!
क्योंकि मैं आज की सड़क छाप बातें नहीं जानता !
जुआ शराब नहीं जानता !स्व की कोटर में नहीं बंद नहीं होता!
इसी कारण जमाना मेरी बातों में दिलचस्पी नहीं रखता!
किसी को अपना जान के करता हूं बात!
कोई कहता है अरे मूर्ख! ये कहाँ से घिसी पिटी बातें सुना रहा है?
आज नया जमाना है नई बात कर!
क्योंकि जो तू बात कर रहा है!
वह स्टाइल पुराना है
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जब बीच मझधार में तूफानों से गिर जाता हूं!
सहारे के लिए मेरी आंखे दौड़ती!
पर जब चारों ओर दृष्टिपात करके अपने को देखता हूं!
तो खुद को कंगाल पाता हूं!
गुड मॉर्निंग टाटा बाय नहीं करता!
पिज्जा बर्गर नहीं जानता!
पॉप रीमिक्स की धुन पर थिरकना नहीं भाता
मेरा दही रोटी का कलेवा
जय श्रीराम मेरा अभिवादन
गरबा घूमर मेरा नृत्य
सोना बाबु से कोसों दूर
भाई बहन है मेरा कथ्य
✍️ महावीर प्रसाद वैष्णव
बाज्यावास जिला सीकर राजस्थान
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(पूर्णियां, बिहार)
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