मन के तम को जो हरे ,
अब कोई दिया बना क्या ऐसा।
हो गई फिर से रुत मस्तानी
पर क्या मिटा आंखों से पानी।
कितने घर से अपने छूटे
अपने ही अपनो से रूठे,
कैसा काल दिया ईस्वर ने,
दी कैसी थी महामारी।
बच्चो से पिता मात है बिछड़े
है उनकी आंखों में पानी।
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रोशन हुआ जहाँ दियो से,
वो भला कैसे मनाए दीवाली।
नन्हे मुन्नों के सपने टूटे ,
कोई बताये क्या दुनिया दारी।
काश अमावस ऐसी होती,
उजली होती रात अंधियारी,
हर बगिया में रौनक होती,
खोते नही कोई भी माली,
उनकी भी दीवाली हैप्पी होती,
ना होता आंखों में पानी,
काश ना आती कोरोना बीमारी।
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अन्नपूर्णा तिवारी 'अनु' मण्डला मध्यप्रदेश
*रचना स्वरचित एवम अप्रकाशित है।
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*साहित्य आजकल टीम*
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