11/25/21

याद आये जब वो दिन :- सुनील सागर

 वो दिन बचपन के 


याद आये जब वो दिन बचपन के 

भर आये आँख मन के ।

वे बचपन का खेल 

लड़ना - झगड़ना और फिर मेल ।

कितकित की वह गोटी 

पतली न ज्यादा मोटी ।

कब्बडी में वो छूकर  भागना 

मर - मर कर कई बार जीना ।

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याद आये जब वो दिन बचपन के 

भर आये आँख मन के ।

कांच    की     गोली 

कोट बनाकर हमनें खेली ।

खेल में प्यारा लुका - छुप्पी 

छिप - छिपकर मारना धप्पी ।

लट्टू का यूँ तेज नचाना 

गुंज मारकर उसको फाड़ना ।

करते कितनी मौज - मस्ती

बनाकर चलाते पानी मे कागज की कश्ती ।

याद आये जब वो दिन बचपन के

भर आये आँख मन के ।


✍️ सुनील सागर

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          (पूर्णियां, बिहार)

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3 comments:

  1. मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद मान्यवर

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  2. Loveing to see your poems every time

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