शीर्षक - आँखों देखी दास्तान
वो कौन था, क्या था ?
जिसके वजह से पूरा मुहल्ला शांत था।
बाजार की गालियाँ भी सुन - सान हो गई।
हरी सब्जियां पीली हो गई।
नोटों से भरे जेब खाली हो गया,
अपने भी अपनों से दूर हो गया,
एक ही कमरा में रहने को मजबूर हो गया।
कोई आधी पेट सो रहा था, तो कोई भूखे ही सो रहा था।
वो गलियाँ जहाँ बच्चों के शोर - सरावा,
गाड़ी, साईकिल की घंटी सुनाई देती थी,
वहाँ एम्बुलेंस का सायरन सुनाई दे रहा था।
नित्य दिन गली, मुहल्ले, बाजार में
मिलने वाले लोग अब घर में ही रहने लगे ।
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नहीं दिख रहा था, दुकानों पर चाय की
चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ते लोग ।
नहीं दिख रहा था, पटरियों पर दौड़ती हुई रेल गाड़ियाँ।
बस दिख रहा था नन्हे - नन्हे
पाँव, जो अपने - अपने घर की ओर जा रहा था।
ना तो होली थी , ना ही दशहरा था।
ना तो ईंद था, ना ही मुहर्रम था।
फिर भी लाखों लोग घर की ओर आ रहे थे।
कल जो लोग बड़े - बड़े कंपनी में काम कर रहे थे,
आज वो लोग गली - गली काम ढूढते हुए भटक रहे थे।
कहीं पर माँ - बाप अपने बेटे के लिए तड़प रहे थे,
तो कहीं पर उसके बच्चे माँ - बाप के लिए।
कहीं पर स्त्रियों के माथे की सिंदूर उजड़ रहा था, तो
कहीं पर बुढ़ापे की लाठी टूट रही थी।
सदियों बीत चुकी थी,
मगर ऐसा दर्दनाक मंजर स्वप्न ( सपना ) में भी नहीं आया था।
✍️ शिवम प्रकाश
(मुंगेर बिहार)
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Ati sundar💝💝💟💕💕
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteAti sundar rachna
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