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12/21/21
मैं आत्म निर्भर हूं:- डॉ मीना कुमारी,
शीर्षक:- मैं आत्म निर्भर हूं।
मैं रोज कॉलेज
जिस रास्ते से गुजरती हूं,
उसी रास्ते पर रिक्शा चलाते हुए
नजर आते हैं एक बुजुर्ग।
बनियान और लुंगी पहनकर,
कभी देखा नहीं मैंने उन्हें;
फुल आस्तीन के शर्ट पर।
बारिश में ,सर्दी में ,गर्मी में,
कभी-कभी अंधेरी रात में भी
देखा मैंने उन्हें अकेले
बैठे हुए उसी रिक्शा पर।
पता नहीं उनका परिवार है या नहीं,
क्योंकि हर हमेशा वह बैठे हुए रहते हैं
सब्जी मंडी के पास उसी रिक्शा पर।
लटकती रहती है एक बकेट
उसी रिक्शा के निचले भाग में;
और एक फटी पुरानी सी
चादर रखी हुई ऊपरी भाग में।
मैंने उन्हें देखा गर्मी में,
गमछा हिलाते हुए उसी झाड़ के नीचे।
और सर्दी में सुबह -सुबह
कूड़े कचरे का अलाव जलाकर सकते हुए।
सर्दी में ठिठुरता हुआ देखकर,
मैंने उन्हें देना चाहा एक ऊनी स्वेटर।
पर उन्होंने उसे लेने से मना किया
मुझे नहीं चाहिए किसी का दिया।
मैं किसी की मेहरबानी नहीं ले सकता।
उनके चेहरे का हाव भाव यही मुझे समझा दिया।
मैं चुपचाप निकल आए वहां से,
अपने आंखों में आंसू छुपाए हुए।
आज भी देखती हूं मैं उनको,
उसी हालत में ,उसी रास्ते पर,
जब भी देखती हूं उनके चेहरे पर मंद स्मित,
आनंद और उत्साह भरे भाव नजर आते हैं।
जो मानो यही कह रहे हो:-
मैं आत्म निर्भर हूं ,आत्म निर्भर...!
✍️ डॉ मीना कुमारी,
हिंदी प्राध्यापिका
सरकारी पदवी पूर्वा कॉलेज (बालक) बीदर
कर्नाटक
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बहुत ही अच्छा लिखा है मैम अपने , शुभकामनाएं
ReplyDeleteसप्रेम आभार दिदी💕🙏
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