कुछ भी न मैने लिखा
कई हफ्तों से कुछ भी न मैने लिखा
क्या है कारण बंधु मुझे न पता
बैठूँ लिखने तो कोई विषय न सूझे
सूझे तो कैसे लिखना कलम ये पूछे
इस उधेड़ बुन में बीते जाता समय
उठ जाता टेबल से बिना कुछ लिखे
कितने बिखरे विषय हैं सृजन के लिए
डायरी में कई उन्नयन के लिए
पर न जाने सदाएं क्यूँ न गूंजे मन में
ये उचित है कवि लेखन के लिए
क्या ये शांति तूफ़ाँ के पूर्व का है
या लिखने की कुगत न बाकी अब है
या कह ले कवि ऐसे पल से गुजरे
जो भी है पर खाली सृजन का नभ है
तब से बेचैनी बेदम मुझमे रहे
माने न लाख मनाऊँ मेरा कहे
आ जाती दया अनचाहे खुद पे
आखिर कब तक बेचैनी को ये सहे
ओ कलम के सिपाही बताओ मुझे
न बताये तो वाणी की कसमें तुझे
पाऊँ कैसे निजात इस दशा से सहज
और लिख दूँ गाए जगती जिसे
✍️ प्रभात कुमार शर्मा
कटगी
छत्तीसगढ़
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