बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"* प्रतियोगिता कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 प्रवीण पंड्या जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।
मंच साहित्य आजकल
आपकी रचना आपकी पहचान
कविता:- मित्र
मन की गहराई में
मेरा मित्र छुपा है।
दूर पास न देखूं तो
मेरा मन छुपा है।।
मित्र सहयोग के
साथी होते है।
कभी वो अपनो
से भी दूर होते हैं।
मत करो उनके साथ
अटखेलिया खेल
कभी कभी तो अपनो
से भी बदनाम होते है।।
मित्र मेरा शिकार हे।
मित्रो की बातो से।।
मित्र मेरा दुलार है।
मित्रो की आदतों से।।
मित्र को मैं पत्र
लिखता हु।
कभी कभी तो
मैं ही खो जाता हूं।।
अंधेरे का उजाला है
मेरा मित्र।
सबकी मदद करता है
मेरा मित्र।।
कलयुग में ऐसा मित्र
मिलना कठिन है।
पराए में भी वो अपना
मिलना कठिन है।।
मित्र की अभिलाषा है
की लोग उसे याद करे।
जीवन का वो हिस्सा है
की लोग फरियाद करे।।
मन की शाखा से वो
पनपता रहता है।
मेरा मित्र मेरा हे
वो तो झूमता रहता है।।
आनंद की अनुभूति
होती हैं।
मित्र मेरा मिल
जाता है।।
दूसरो को खुश
देखना चाहता है।
मेरा मित्र हौसला
उजागर चाहता है।।
कवि प्रवीण पंड्या
बस्सी डुंगरपुर राजस्थान
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