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12/29/21

और कितने संगमेश:- डॉ. मीना कुमारी

बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"*  प्रतियोगिता कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 डॉ. मीना कुमारी जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।   

शीर्षक :-       "और कितने संगमेश.....?             



                      आज मैंने सुबह टीवी खोला, न्यूज़ चैनल पर यह समाचार आ रहा था कि, कुछ विद्यार्थी अपनी परीक्षा समाप्त कर पिकनिक मनाने किसी डैम पर जाते हैं और पानी में डूब कर दो -तीन विद्यार्थियों की मृत्यु हो जाती है।


      बस मुझे मेरे आदर्श विद्यार्थी  'संगमेश'  की झट से याद आ गई‌। संगमेश पीयूसी सेकंड ईयर कॉमर्स का छात्र था। गोरा-चिट्टा, दुबला-पतला, लंबी नाक आंखों में हमेशा आत्मविश्वास भरा , कक्षा में एकदम शांत रहने वाला, दूसरे छात्रों की तरह वह अधिक वार्तालाप नहीं करता था, पर पढ़ाई में होशियार गृह कार्य समय पर करने वाला।


    संगमेश अपने माता-पिता का लाडला बेटा था और उसकी दो बहनें भी थी । कॉलेज छूटने पर किसी मोबाइल सिम कार्ड की ऑफिस में काम करता था।  उसने अपनी मेहनत की कमाई से बड़ी बहन के विवाह की जिम्मेदारी उठाई। 


   वह  विशेष रूप से निबंध स्पर्धा में भाग लेकर कॉलेज में फर्स्ट आया करता था। कई बार डिस्ट्रिक्ट लेवल में भी फर्स्ट पुरस्कार उसने प्राप्त किया था। उस साल (2017) के शिक्षक दिवस पर  उसने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। और वह समारंभ सफलतापूर्वक समाप्त  हुआ।


      दूसरे दिन मेरी कक्षा में उसने मुझसे पूछा कि "मैडम कल के टीचर्स डे का फंक्शन कैसा रहा?"

मैंने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया "बहुत बढ़िया! आपने ही तो आयोजन किया था।"

सोमवार के दिन वह कॉलेज में नज़र नहीं आया।  उस दिन संगमेश का अंतरंग मित्र  (क्लोज फ्रेंड) दिनेश रोते लड़खड़ाते हुए क्लास में आया। उसकी आंखें लाल हो चुकी थी। मैंने उसे से पूछा -

"क्या हुआ? आपकी आंखें लाल हैं और आप बहुत घबराए हुए हो?"

उसने रोते हुए उत्तर दिया- "मैडम संगमेश नहीं रहा।"

मैंने पूछा- "क्या हुआ संगमेश को?"

उसने कहा-"कल संडे रहने के कारण वह अपने गांव में मित्रों के साथ किसी कुएं पर तैरने के लिए गया था और पानी में डूब कर उसकी मृत्यु हुई।"


   संगमेश के मृत्यु की खबर उस दिन के समाचार पत्र में भी छपी हुई थी, फोटो के साथ। कॉलेज में यह समाचार मिलते ही सभी प्राध्यापक वर्ग और विद्यार्थियों के आंखों में आंसू बहने लगे। हम उसी दिन उसके गांव मिलने भी गए। संगमेश के पिताजी की अवस्था बहुत गंभीर थी और मां बहुत रो रही थी। मैं उनके दु:ख को शब्दों में अभिव्यक्त करने में असमर्थ हूं....।


       आज भी अनेक विद्यार्थी अपने माता-पिता से दूर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए किसी शहर में जाते हैं और अक्सर ऐसा होता है कि, परीक्षा के अंतिम दिन कुछ विद्यार्थी मिलकर किसी ऐसी जगह पिकनिक मनाने के लिए जाते हैं जहांपर डैम इत्यादि हो। और उनके साथ इस तरह की घटना घट जाती है।

      हर विद्यार्थी के घर उनके परिजन अपने बच्चों के सफलतापूर्वक घर वापसी का इंतजार करते हैं, न कि उनके जीवन के पूर्ण विराम का...!

    बस इसी तरह की घटनाएं जब भी मैं सुनती हूं या देखती हूं तो मेरे हृदय की आह मुझे यही  कहती है- "और कितने संगमेश....?"

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                           ✍️✍️✍️स्वरचित:- डॉ. मीना कुमारी





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