चैतराम के दूनों बेटा सोहन अउ मोहन मा अबड़ मया हावय। बड़े बेटा सोहन गाँव ले साढ़े तीन कोस दूरिया शहर के इस्कूल मा मास्टर हे। मोहन पढ़े लिखे हावय फेर नउकरी नइ करके अपन पुरखौती खेती बारी ला नवा उदिम ले करथे। सोहन अउ मोहन के बिहाव हो गय हावय। सोहन के गोसाइन सुनीति कम पढ़े लिखे हावय फेर घर गृहस्ती के बूता ला अबड़ सुग्घर ढंग ले करथे।मोहन के गोसाइन गौटिया घर ले आय हवय अउ डिग्री वाली हे फेर घर के बूता मा निच्चट अड़ही अउ सुस्तही। गौटिया के बेटी होय ले अटिया के गोठियई हा नइ गए हावय। दूनो के दू दू झन लइका हावय। सोहन के एक बाबू अउ एक नोनी। मोहन के दूनो बाबूच आय। देरानी जेठानी मा जइसन सब घर होथय ओइसन इँखर घर नइ हे। कभू दूनो झन बहिनी बरोबर रहिथे ता कभू एक दूसर ला कोनों ले कमती नइ मानय। मास्टर के गोसाइन अँव कहिके कभू बड़की हा अटियाथे अउ गौटिया के बेटी अँव कहिके कभू छोटकी हा।
चैतराम के उमर घलाव भगवान घर जाय के हो गय हावय। ओखर चारो नाती नतनीन लइकामन एक माई के पिला बरोबर रहिथँय। संग मा खेलथँय, संगे संग खाथय अउ संगे संग पढ़े बर गाँव के इस्कूल जाथँय। सोहन मास्टर इस्कूल ले लहुटत बेरा कोनों खई खजाना लानथे ता सबो लइका ला दुना भेद करे बाँट देथे। मोहन घर के खेती मा साग भाजी घलाव उपजाथे अउ शहर के मँडी मा भेजवा देथे। जेखर ले ओला आधा नउकरिहा बरोबर आवक हो जाथय। घर मा साग भाजी के कमती नइ होवय। तेल,नून,हरदी,मिरचा, के बेवस्था मास्टर शहर ले कर देथे। परिवार मा सगा सोदर के मान गउन बर मोहन के गोसाइन ममता हा देखते अउ खवई पियई, चूल्हा चौका हा सुनीति के भरोसा रहिथय। सबो परिवार आठ दस बच्छर ले अइसने सुख से रहत आवत हे।
देवारी तिहार हा चार पाँच दिन बाँचे हवय।लइकामन के अउ मास्टर के देवारी छुट्टी सुनागे हवय। एसो देवारी तिहार मा धनतेरस दिन सोहन हा सबो लइका ला फटफटी मा बइठारके शहर मा लेगिस अउ उँखर मनपसँग के अँगरखा, खेलउना, फटाखा बिसा दिस।सबो लइका अड़बड़ खुश हो के घर आइन अउ अपन महतारी मन ला देखाइन। सोहन अपन बर घलाव नवा अँगरखा अउ सुनीति बर लुगरा पोलखा ले आइस। मोहन अउ ममता मन अपन पसँग के बिसाही कहिके उँखर बर नइ लाइस।इही हा ममता के मन ला नइ भाइस। रतिहा अपन गोसइया ला दू चार ठन सुनाइस अउ नउकरी नइ करे बर ताना मारिस। मोहन ओखर कइरहा अउ अइठहा गोठ ला ला सुनके कलेचुप रहिगे। बिहनिया ले ममता मुहू ला करु करु करे लगिस अउ अपने अपन कुरबुराय लगिस। मोहन अपन कोला बारी मा चल दिस।
मँझनिया मोहन अपन गोसाइन ला शहर जाय बर तियार करिस।दूनो झन देवारी के दिया, करसा कलौरी गुवालीन संग सिंगार के चूरी चाकी, टिकली, नखपालिस माहुर आलता, मेंहदी, क्रीम, नोनी बर घलो सजे सँवरे के जिनीस बिसाइन। ममता अपन बर माँहगी वाला लुगरा पोलका बिसाइस। चाँदी के नवा साटी घलो बिसा के लाइस। बिहनिया के करु मुहू संझात ले मीठ मीठ होगे। दूसर दिन लक्ष्मी पूजा के शुभ लगिन दिन सोहन हा एक ठन दस हजार वाला मोबाइल अउ सुनीति बर रानी हार ले आनिस अउ पूजा ठऊर मा राखिन। ममता हा अपन चाँदी के साटी ला पहिलीच राख डारे रहिस। रानी हार ला देखते साट ममता के आँखी बटरागे। ओखर हिरदे मा तो देवारी मा होली जरगे। जइसे तइसे तिहार निपट गे। नवा मोबाइल आय ले सबले जादा लइका मन खुश होइन फेर अब मोबाइल बर लइका मन के रोज झगरा होय लगिस।
दू महिना हो गय अब लइका के झगरा मा सियानमन झपाय लगिन। सुनीति हा तो कइसनो कर के लइका मन ला समझा लेवय फेर ममता के मया अपन लइका मन बर जादा रहय। मोबाइल ला ओहा अपनेच लइका मन ला धरायबर सुनीति संग घलो दू दू बात करे मा पाछू नइ रहय। झगरा अतिक बाढ़गे कि देनो देरानी जेठानी अनबोलना होगे। एक दूसर के छाँव नइ खुँदय। सुनीति हा एक दिन मोहन ला कहिस- तँय एक ठन मोबाइल लान के घर टोरे के उदिम कर डारे। ममता हा रोज मोर अउ लइका मन संग बने बेवहार नइ करय, लड़ते रहिथे। अनबोलना घलाव होगे हावय। तेखर ले तो बने होतिस हमन शहर मा किराया के घर लेके रहि जातेन। सोहन घर मा होवत सबो घटना ला जानत रहय। फेर बड़का होय ले कुछ कहि नइ सकय।
एक दिन अपन ददा ला बताईस कि नवा बच्छर ले हमन शहर मा रहिबोन। अउ तहू हमर संग उँहिचे रहिबे। चैतराम घलो घर के सब इस्थिति ला जानत रहय, जादा कुछू नइ कहिस,फेर अतकीच कहिस- मँय मरत ले गाँव ला नइ छोड़व। इहे माटी पानी पाहूँ। तुमन ला जइसने करना हे कर लेवल। ददा के गोठ सुनके सोहन ला दुख लगिस फेर ददा के मान रखेबर ओखर मन के सम्मान राखिस। नवा बच्छर मा सोहन अपन परिवार ला धरके शहर चल दिस।
अब ममता के माथे सब घर दुवार के बूता पानी, चूल्हा चौका आगे। सुनीति के रहत ले जतका सुख भोगे रहिस सब आठ दिन मा निकल गे। ओखर खुद के खवई पियई के ठिकाना ले बहिर होगे। लइका मन ला बेरा बखत मा खाय पियेबर नइ मिले। चैतराम ला सुनीति के सुरता घेरी बेरी आवय। बेरा मा पानी पसिया नइ मिलय, उपर ले ममता के टेचरही गोठ।
तीन महिना बीत गे। फागुन तिहार अवइया हे कहिके अउ अपन ददा ला देख लेहूँ कहिके सोहन एक दिन गाँव आइस। घर के चोरो बोरो हाल ला देख के आँखी डबडबा गे। ददा के पलगी करिस ता ददा के असीस घलाव बने ढंग के नइ निकल पाइस।ओखर आँखी मा आँसू भर गे रहय। ददा के देह ला देख के सब समझ गे। फेर कुछू नइ बोल सकिस।सेव, केरा, अंगूर, संतरा ला ददा ला देइस।लइका मन बड़े ददा आय हे कहिके दउड़त आइन अउ अपनमन बर काय लाने हस पूछिन। भैया अउ दीदी ला काबर नइ लाय कहिन। सोहन हा लइका मन बर लाने गन पिचकारी, रंग, गुलाल, टोपी, ला देइस। लइका मन खुश होके भीतरी डहर चल दिन। पाछू ममता चाय धरके आइस अउ पलगी करके चल दिस। सोहन अपन ददा संग दुख सुख के गोठ करे पाछू घर जाय बर निकल गे।
घर आके सुनीति ला सब बताईस, वहू ला बड़ दुख होइस फेर दू महिना अउ बीतगे। गर्मी छुट्टी मा एक दिन मोहन हा अपन लइका मन ला धरके शहर आइस। लइका मन अपन भई बहिनी ला अबड़ दिन मा मिलके घातेच खुश होइन।बड़े दाई हा लइका मन बर तुरते खाय पियेबर बेवस्था कर दिस। अबड़ दिन मा लइकामन बड़े दाई के हाथ के बने खई पाके पेटभरहा खाईन। दूनों लइका के मन घर आय बर नइ होवत रहय फेर मना बूझा के सुनीति हा उनला भेजिस। एक महिना अउ बीतगे। खेती किसानी के दिन आगे। मोहन ठऊका खेती मा चेत लगावत रहिस कि ममता बीमार परगे। सुजी पानी, डाक्टर बइद के एती ओती मा मोहन के खेती बारी रोहो पोहो होगे।ममता के बीमारी ला कोनों डाक्टर जान नइ सकिस। मोहन ला घर, खेती, लइका अउ ममता संग ददा के घलाव देख रेख करे बर परय।
एसो धान पान बने नइ होइस।बारी बखरी मा साग पान अपनेच खाय के पूरती होइस। मोहन अउ ममता के घर के स्थिति डावाडोल होगे।एती देवारी फेर लक्ठियागे। घर के साफ सफई, लिपई पोतई बर पहिली सुनीति हा आगू आगू ले जोरा कर डरे।ममता ला एखर कुछू अनभो नइ रहय।बीमारी के सेती ओखर देहे निच्चट पातर दूबर होगे रहय। मोहन हा एसो घर के बहिर बहिर ला बनिहार करके नेग असन लिपवाइस। ममता के बीमारी हा देवारी के उछाह ला कमती कर दिस। सोहन मन अपन परिवार संग एसो के तिहार ला शहर मा मनाइन। अपन ददा अउ लइका मन बर अँगरखा अउ फटाखा भेजवाए रहिस।
तिहार मनाय के पन्द्रा दिन बीते रहिस कि चैतराम के चिट्ठी चिरागे। मोहन हा सोहन ला खबर करिस। सोहन सबो परिवार संग आके ददा के सब किरयाकरम ला करिस अउ दसकरम के पाछू शहर लहुटगे। एती ममता अउ मोहन बिन धारन के होगे। दू अढ़ई महिना भर बीते रहिस कि ममता हा अपन गोसइया मोहन ला कहिस- सुनव हो! आज मोला मोर बीमारी के पता चल गे हावय। मय अब जादा दिन तुँहर सँग नइ दे पाहूँ तइसे लागथे। मोला इरखा अउ चिन्ता के बीमारी हा धर ले हावय। एखर इलाज कोनों डाक्टर बइद कर नइ हे। मोला एक पइत सुनीति दीदी कर शहर ले जातेव।मोहन ओखर बात समझ गे।
आठ दिन पाछू इतवार दिन मोहन अपन परिवार संग शहर मा सोहन के घर पहुँचगे।सोहन सबो परिवार संग मोहाटी मा तारा लगा के कहूँ जाय बर तियार ठाढ़े रहय।मोहन ला सबो परिवार संग आवत देखिन ता वहू मन हड़बड़ा गे। सबो झन पाँव पलगी होइस तब तक सुनीति हा तारा ला हेर डरिस। सबो झन भीतर मा आइन।लइकामन भई बहिनी संग मिलके अबड़ खुश होइन।एती ममता हा सुनीति के गोड़ ला धरके अपन गलती बर माफी माँगत अपन घर ला सँभाले बर अरजी बिनती अउ गोहार करत बमफार के रोय लगिस। दीदी! मय अब जादा दिन नइ जी सकव, मोर लोग लइका के हियाव कर लेबे, मय इरखा करके गलती कर परेंव, मोर सुखी संसार मा आगी लगा परेंव।मोला नान्हे बहिनी समझ के माफी देदे अउ चल के तोर घर दुवार ला तहीं संभाल ले।
ममता के रोवई ला सुनके अउ ओला चुप करावत सुनीति के आँसू घलाव निकल गे। ओला चुप करावत कुरिया मा लेग के बइठारके अराम करे बर कहिस। रँधनी कुरिया मा जा के तुरते सबो झनबर खाय पीये के बेवस्था मा लग गे। सबो झन ला सुनीति हा एकसरी, दूसरइया पोरस पोरस के खवाईस। संझा मोहन हा घर आय बर ममता ला लइका मन ला बलाय बर कहिस। ममता हा फेर रोवत रोवत सुनीति ला गाँव आय बर कहिस।
आठ दिन पाछू बिहनिया ले सोहन घर के मोहाटी मा एक ठन मेटाडोर ठड़ा होके हारन बजाइस। ममता हा ओतकेच बेरा बाहरी धरके दुवार बाहरे बर निकलत रहय। अपन जेठ सोहन ला मेटाडोर ले उतरत देख के मुड़ी ढाँकत भीतरी डाहर गीस अउ मोहन ला हाँक पारके बलाइस। सोहन अपन सबो समान ला धरके परिवार संग आज गाँव लहुटगे रहिस। आज ये बच्छर के आखिरी दिन रहिस फेर मोहन अउ ममता बर आजे नवा बच्छर आगे। घर मा नवा उछाह छागे। सँझा ये बच्छर के बिदई अउ नवा बच्छर के आय सेती सुनीति हा अपन रँधनी कुरिया मा सोहारी तसमई बना डरिस। खाय के पहिली सबो झन तुलसी चौरा मा पूजा करिन अउ चैतराम के टँगाय फोटू कर जाके असीस लेइन। सबो परिवार मिलगे ता ममता के दुख घलो भुलागे नवा बच्छर मा नवा खुशी आगे।
हीरालाल गुरुजी 'समय'
छुरा, जिला-गरियाबंद
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