विषय-समलैंगिक संबंध
शीर्षक- दिखावे का विवाह
पुरुष से स्त्री का असंतुष्ट होना समलैंगिकता का कारण है। तात्पर्य यह है। कि स्त्री पुरुष रूपी बंधन से आजाद होना चाहती है कदाचित स्त्री को यह ज्ञात नहीं है कि पुरुष के शुक्राणु से ही स्त्री के तन में आकर्षण और निखार तथा सौन्दर्य की वृद्धि होती है स्त्री की बुद्धि तेजस्वी पुरूष के शुक्राणु से बढ़ती है जो आज आकाश की गहराई को नाप रही हैं शास्त्र में लिखा है यदि स्त्री पुरुष से साथ मैथुन नहीं करेगी तो शीघ्र ही बुद्धि और तन से, सौन्दर्य और आकर्षण से बृद्ध हो जायेगी स्त्री से विवाह करके ये यदि ये सोच रही है कि वो संतुष्ट और सुखी रहेगी तो ये संभव नहीं,समाज को दिखाने के लिए संलैगिकता के आधार पर विवाह का पालन हो रहा है किन्तु अन्दर यह नहीं है संलैगिकता के आधार पर चलने का नाटक करने वाली स्त्री बिना पुरुष के संसर्ग के रह ही नहीं सकती।
कौआ यदि आंटा लगा ले तो वो हंस नहीं बन जाता है यदि पुरुष से उन्हें संतुष्टि नहीं थी तो फिर पुरुष के तन का आलिंगन क्यूं? ये नियम के बल पर अलग तो हो जाती है दिखावे में किन्तु मन और संसर्ग से पुरुष का ही सहारा लेना होता है बनायी गयी सुविधाओं से वो संम्भोग का आनंद ले सकती है किन्तु मन को संतुष्ट नहीं कर सकती है क्योंकि पुरुष के तेज के बगैर स्त्री का मन और तन प्रफुल्लित नहीं होता है संलैगिकता का कारण कोई कोठे पर रहने वाली वैश्या नहीं है अपितु घर में रहने वाली कुछ छुपी हुई वैश्याएं हैं जो बिना पहले पुरुष का आलिंगन करती है और फिर दिखावे के लिए नियम के अनुसार कार्य जो यह कर रही है यदि गहराई से सोचा जाए तो ये पुरुष के बिना नहीं रह पा रही है जो संतुष्टि पुरुष का तन दे सकता है जो सुख पुरुष का तन दे सकता है वह स्त्री का तन नहीं। जो पुरूष ऐसा कर रहा है वह भी बिना स्त्री के साथ मैथुन किए मन मस्तिष्क को संतुष्ट नहीं करता है दिखावे के लिए लोग नियम के अनुसार विवाह तो कर रहे हैं किन्तु उन्हें गौर से देखो क्या वो बिना पुरुष के रह रही है नहीं।और न तो रह सकती है।
संलैगिकता के लिए न्यायालय से मांग कर ले ली उसके अनुसार विवाह कर ली लेकिन उसका पालन नहीं पुरुष बिना स्त्री के नहीं खुश रह रहा है और स्त्री बिना पुरुष के नही खुश यह रही है। पुरुष का तन स्त्री के तन से लिपट रहा है और स्त्री का तन पुरुष के तन से लिपट रहा है दिखावे के लिए चाहे जो हो किन्तु "घर का हाल पड़ोसी जाने"। स्त्री खुशी ढूंढते सदियों से चली आ रही है न जाने उसे कब खुशी होगी और नारा लगाने से मुक्त होगी मैं उन स्त्रियों का सम्मान करता हूं जिनमें सचमुच पवित्रता है जो पतिव्रता हैं उन्हें नमन हैं ये मेरा लेख उन स्त्रियों और पुरुषों के लिए है जो दिखावे में कुछ और अन्दर से कुछ और।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
आचार्य आशीष पाण्डेय
पता सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश
( नोट:- यह लेखक का अपना विचार है )
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"दिखावे का विवाह " प्रकृति से जुड़ी सुन्दर सार्थक विचार ।
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