1/16/22

हे मेरे प्रिय राम:-विजयव्रत कंठ

बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"*  कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 विजयव्रत कंठ जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।

 

🌷हे मेरे प्रिय राम🌷

सुमिरन नितदिन करुं प्रेम से,

हे मेरे प्रिय राम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

जनकपुर जाकर के तुमने,

दिव्य धनुष को तोड़ा।

जनकनंदिनी मां सीता संग

प्यारा नाता जोड़ा।।

खुशी के मारे उछल पड़े सब,

चिंता मिटी तमाम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

पलकर राजमहल में भी तुम,

बने ना भोगविलासी।

पूरा  करने पिता वचन  को,

हुए थे तुम वनवासी।।

नहीं और कोई कर सकता,

बड़ा कठिन यह काम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

भक्तिभाव से खड़ा था केवट,

लेकर अपनी नौका।

गंगा  पार  कराने  को  जब

आया पावन मौका।।

पांव  पखारे  उसने   तेरी

नहीं लिया कोई दाम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

किसी से मिलने जुलने में ,

जरा नहीं शरमाए।

शबरी  के  जूठे  बेरों  को,

बड़े चाव से खाए।।

उसने तेरी  बाट  बुहारी,

बिना किए आराम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

लखन सिया संग रहे वनों में,

झेला कष्ट अपार।

निसिचरहीन धरा करने को,

रहते थे तैयार।।

बाण चलाकर उन दुष्टों को,

पहुंचाया सुरधाम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।‌।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

संकट से सुग्रीव घिरा था,

तुमने उसे उबारा।

था  भाई  बालि  ही  दुश्मन,

छिपकर तुमने मारा।।

डरकर भागा फिरता था वह,

सुबह से लेकर शाम।

महिमा तेरी  बहुत  बड़ी  है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

मां सीता को हरकर रावण,

नहीं सुखी रह पाया।

वैर  ठानकर   प्रभु  राम से,

अंत समय पछताया।‌।

नष्ट  हो  गयी  उसकी  सेना,

और मचा कोहराम।।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है,

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

युगों युगों से  तेरी गाथा ,

गाते हैं नर-नारी।

कांप रही है सारी धरती,

हर लो विपदा सारी।।

सभी पुकार रहे हैं तुमको

त्राहिमाम त्राहिमाम।

महिमा तेरी बहुत बड़ी है, 

बहुत बड़ा है नाम।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

✍️विजयव्रत कंठ

वरिष्ठ आचार्य, सुंदरी देवी

 सरस्वती विद्या मंदिर,बटहा, रोसड़ा, समस्तीपुर









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