1/7/22

मुझे बाहर से मुश्किल है समझना :- डा जियाउर रहमान जाफरी

 


ग़ज़ल 

....... 

-डा जियाउर रहमान जाफरी 


न यों फूलों पे   सुर्खी बैठती है 

तुम्हारे लब पे तितली बैठती है 


फिराया था कभी जो उंगलियां मैं 

न अब बालों पे कंघी   बैठती है 


जो तुम पैवस्त हम में हो गये हो 

दिसम्बर  की भी सर्दी बैठती है 


मुझे बाहर से मुश्किल है समझना 

बहुत अंदर से   हल्दी बैठती है 


न उस कॉलेज में पढना मुझे है 

जहां बाहर से लड़की बैठती है 

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स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग 

मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया, बिहार823001 

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मौलिक, अप्रकाशित तथा अप्रसारित 

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