1/16/22

सांसें रूकती पाईं अक्सर:- रश्मि लहर

 बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"*  कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 रश्मि लहर जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।


सांसें रूकती पाईं अक्सर

है लगा हमें कई बार मरे

फिर दीप तुम्हारी स्मृतियों के

देहरी पर हर बार जले


थीं छूट गई सब उम्मीदें

छूटे थे सब रिश्ते नाते

पर कुसुम तुम्हारे नेह पगे

कदमों पर आ हर बार सजे


कुछ व्याकुलता थी सपनों को

तुमने आना था छोड़ दिया

रातों के संग जुगनू तेरे

वादों के पर हर बार जगे


वो अक्सर बाती सी बनकर

घर को रौनक से भरती थी

उस माॅं की त्याग भरी ख़ुशबू

से मन महके हर बार भरे


बॅंटते-बॅंटते तुम दूर गये

पथरीली ऑंखें सूज गईं

मिलने की आशा छूटी जब

तब अश्रु रुंधे हर बार झरे


स्वरचित

रश्मि लहर








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