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1/16/22

शब्दों में भी एक ज्योति है:- संजय सागर

 बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"*  कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 संजय सागर जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।



“हिन्दी”

हिन्दी सम्मान से सजे बढ़े,

जन–जन के मन पर राज करे ।

उत्थान पतन में साथ रहे,

ना ऊँच नीच के भाव भरे ।


शब्दों में भी एक ज्योति है,

पहचान सुनिश्चित करती है ।

पावनता गंगा सी है इसमें,

रिश्ते अभिसिंचित करती है ।


हो  रूप  गद्य  या  पद्य  सदा,

हर दिन नवयुग ले आती है।

बच्चा, बूढ़ा या युवा मिले,

हिन्दी हर रूप में भाती है । 


जीवन में हर दिन रंग भरे,

हर रूप अंलकृत भाव धरे ।

मोहक मनोहारी रूपों संग,

अभिव्यक्ति की अनुपम छाँव लिये ।


नव पथ पर पग-पग चल दी है,

सँवरेगी विश्व-पटल पर भी ।

पहचाने जायेंगें हम सब,

पहचान बनेगी बस हिन्दी ।


स्वरचित

संजय सागर

लखनऊ








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1 comment:

  1. बहुत अच्छा प्रयास, समृद्ध पटल का। बहुत बहुत शुभकामनाएं

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