बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ आखिर क्यों?? पढ़ें सम्पूर्ण आलेख
इस आर्टिकल में आप पढ़ेंगे जन जन के लिए आवश्यक विषय "बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ" से सम्बंधित सहरसा की रुकसाना आजमी, मधेपुरा के प्रहलाद कुमार व पूर्णियां के हरे कृष्ण प्रकाश द्वारा स्वरचित आलेख। आपसे निवेदन है कि वर्तमान समय में यह चिंतनीय विषय है इसलिए इस सम्पूर्ण आलेख को पढ़ें व अपनों तक अवश्य वार्तालाप कर साझा करें।
"बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ"आखिर क्यों??:- रुकसाना आजमी
समाज में बेटा और बेटी दोनों महत्वपूर्ण है। एक दंपति के लिए बेटा और बेटी दोनों मायने रखते हैं । दोनों की शिक्षा दोनों की अच्छी परवरिश सब कुछ महत्वपूर्ण है ।
पूर्णियां के डॉक्टर V.N सिंह सर के द्वारा चलाए गए अभियान "बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ" उतना ही जरूरी और गंभीर है, जितना भारत में घटती बेटियों की जनसंख्या थी . बहुत से अभियान और जागरूकता के बाद हमने इस लिंगानुपात समस्या के अंतर को बहुत हद तक सुधार करने में कामयाब हुए हैं .
जैसे कि बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ यह अभियान कामयाबी के अपने चरम पर है। ठीक उसी तरह डॉक्टर V.N सिंह सर के अभियान "बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ" उतना ही महत्वपूर्ण और एक गंभीर समस्या जिसको सफल होना बहुत जरूरी है।
क्योंकि यह अभियान बेटियों को पढ़ाने ही नहीं बल्कि उनके अधिकारों से है। अधिकारों के खिलाफ जागरूकता, और उनके शोषण के विरुद्ध अधिकार, उनकी घटती जनसंख्या या बढ़ती जनसंख्या को जानने का अधिकार से है। उसके आत्मसम्मान और आगे बढ़ाने के अधिकार से हैं । तो साथ ही साथ बेटा बचाओ इस अभियान के सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है।
21वी सदी में हम आज बहुत ही आधुनिकता में जी रहे हैं .जितनी आधुनिकता में जीवन यापन कर रहे हैं सहूलतो के साथ परेशानियां उतनी ही आ रही है।
इस सदी के जनरेसन बेटा हो या बेटी किसी को पता नहीं की गलत क्या है, सही क्या है ? पर इस अभियान के बेटा बचाओ का अर्थ बड़ा ही सरल और जागरूक है। मतलब आजकल के ( मॉडल युग) में कुछ जवान लड़के के सोचने का नजरिया, उनके विचार, उनके व्यवहार और बदलते समय का दुष्प्रभाव साफ दिखाई देता है ।
युवाओं में नशा और अपराधिक प्रवृत्ति अपने चरम सीमा पर है। समाज में बढ़ती जितनी ही अपराधिक घटनाएं हैं सभी अनैतिक युवाओं के कारण ही है।
पर यहाँ आप में से कोई वरिष्ठ व्यक्ति मुझसे प्रश्न करेंगे, कि रुखसाना इन अपराधिक घटनाओं का कारण बेरोजगारी, गरीबी ,अशिक्षा भी तो है ।तब मैं कहूंगी जी सर पर इन समाजिक अपराधिक घटनाओं में आखिर लिफ्त तो बेटे ही हो रहे हैं ना . तो क्यों ना हम बेटे को बचाएं।
अगर हम बचपन में ही पर्याप्त समय ,मार्गदर्शन, संस्कार शिक्षा, माता-पिता का पूरा स्नेह दे तो वह गरीबी और बेरोजगारी में भी अपराधिक प्रवृत्ति के नहीं होंगे ! और ना ही किसी निर्दोष की हत्या जा बलात्कार जैसे कुकर्मों के लिए फांसी पर झूलेंगे और ना ही किसी माता-पिता को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा !
इसलिए मैं रुखसाना आजमी अपने V.N SIR के द्वारा चलाए गए इस अभियान का पूरा समर्थन और सराहना करती हूं । सर ने इतना महत्वपूर्ण विषय पर सोचा और हम सब को जागृत किया। हमें वक्त रहते बढ़ रहे अपराधिक घटनाओं में अपने बेटे को बचाना है और इन अपराधिक घटनाओं से युवाओं को बचाना बचाना है।
अगर माता-पिता अपने युवा बच्चों से लगातार बात करते रहेंगे, किसी गलत सलाह या गलत संगत में ना पढ़ने दे, उन्हें उनके महत्व के बारे में बताएं, मोबाइल फोन का दुरुपयोग करने से रोकें, तो शायद इस समस्या को बढ़ने से रोकी जा सकती हैं । मैंने बचपन में संस्कृत के 1 श्लोक मैं पढ़ा था । मुझे वह श्लोक तो याद नहीं पर उसका अर्थ याद है, जो आप सब ने भी किसी न किसी किताब में जरूर पढ़ा होगा। जब बच्चे युवा हो जाएं तो माता-पिता को चाहिए कि उनका दोस्त बन जाए ताकि वह अपने बच्चों के दिमाग को पढ़ सकें। बच्चों के करीब रह सके।
बच्चे भी अपने माता पिता को समझे । तब शायद अपराधिक घटनाओं में बेटों को शामिल होने से बचा सकेंगे । वी.एन सर के इस अभियान को हम ऐसे भी सफल कर सकते हैं शैक्षणिक संस्थान में पढ़ा रहे हमारे गुरु जो सिर्फ 10 मिनट बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ के बारे में अपने क्लास में बात करेंगे ,उसके महत्व को समझाएंगे तो शायद 15 में से 10 बेटियों को हम आत्मनिर्भर बनाएंगे, और कम से कम 7 बेटों को तो अपराधिक घटनाओं मैं शामिल होने से बचाएंगे। जो आज के मौजूदा वक्त के लिए बहुत जरूरी है । इसलिए बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान बहुत महत्वपूर्ण है।
धन्यवाद :- रुखसाना आजमी ( सहरसा )
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बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ आखिर क्यों? - हरे कृष्ण प्रकाश
वर्तमान समय में आज समाज के हर वर्ग के लोग अपने बेटों के साथ साथ बेटियों को लेकर भी जागरूक हैं। पिता हों या माता सभी केे मन में अपने बेटियों को लेकर विभिन्न प्रकार की चिंतन होती रहती है जैसे बेटियों की शिक्षण व्यवस्था किस प्रकार हो जिससे वह सही ढंग से शिक्षा प्राप्त कर सके। उनकी रहन सहन, खान-पान व बेटियों की व्यवहारिक ज्ञान किस प्रकार हो। इसको लेकर सदैव हर माँ-पिता चिंतन अनवरत करते रहते हैं।
जिसके परिणामस्वरूप बेटियां अपने जीवन के विरल पथ को सुगम बना नित नए कृतिमान स्थापित करती रही हैं। वहीं बेटों को लेकर भी माता-पिता सदैव चिंतन ही नहीं करते बल्कि ज्यादा चिंतित भी रहते हैं। बेटा किस प्रकार बेहतर शिक्षा प्राप्त करें ? उनका जीवन कैसा हो? पढ़ाई के क्रम में कोई पैसा का कमी न हो? वह किस प्रकार अपने कार्यों से जग में परचम लहराए ! इन तमाम चीजों को ध्यान में रख कर बेटों के मांग को पूरी करने हेतु हर माता पिता किस प्रकार दिन रात एक करते रहते हैं, यह हमसभी भली भांति समझते ही हैं।
आज के समय में जहां बेटे नित नए कृतिमान स्थापित कर इतिहास रच रहे हैं तो वहीं बेटी भी दुनिया में अपना परचम लहराने में पीछे नहीं रही हैं।
समाज में पर्याप्त कुरीतियों को देखकर आज के समय में बेटों और बेटियों के लालन पालन में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। आज ज्यादातर बेटे चाहे अच्छी शिक्षा प्राप्त किये हों या कम शिक्षा कुरीतियों के दल दल में फंसे जा रहे हैं जैसे चोरी, नशा हिंसा व तमाम आपराधिक गतिविधियों में खुद को शामिल कर धन के साथ साथ खुद के जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। खुद की अस्तित्व से अनजान हो रहे हैं।
इन तमाम अवगुणों से बेटों को बचाने हेतु आज तमाम अभिभावकों को जरूरत है अच्छी शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ बेटा को बचाना अर्थात "बेटा बचाओ" उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान कर जीवन की सही राह पर चलने को प्रेरित करना। वहीं "बेटी पढाओ" का मतलब है कि बेटों के तरह ही बेटियों को भी शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़कर उनके सपनों को उड़ान देना। अंततः वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर बेटा को बचाना और बेटियों को पढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। इन्हीं तथ्यों के आधार पर रेणु, सुधांशु की धरती पूर्णियां के जाने माने शिक्षाविद व सृजनात्मक पाठशाला समूह के संस्थापक आ0 डॉ भी. एन सिंह कहते हैं बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ। इसलिए आज जन जन के लिए आवश्यक है "बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ"।
धन्यवाद :- हरे कृष्ण प्रकाश ( पूर्णियां )
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बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ आखिर क्यों? - प्रहलाद कुमार
इस प्रश्न में बेटा बचाओ का मतलब आज कल लड़को के वर्तमान नजरिया, विचार, व्यवहार, आचरण को देखते हुए कहा गया है बेटा बचाओ।
हां ! अब बेटा को बचाने का समय आ गया है। आप कहीं भी देखिए चाहे वह स्कूल हो , कोचिंग हो , चौराहे हो या सफर करते बस या ट्रेन में अक्सर लड़को को अश्लील हरकतें करते देखेंगे। आजकल सबसे ज्यादा लड़कों में नशा की लत लग गई है। बहुत छोटे छोटे बच्चों को देखा है नशा करते हुए। पता नही आगे क्या होगा इस समाज का जो आज नशा के लत से जीना सीख रहा है वह बेहतर समाज नहीं दे सकता।
इसलिए बेटा को बचाना होगा।
गलत विचार से, गलत संगति से, गलत आचरण से, गलत व्यवहार से, गलत गतिविधि से, और गलत लत से ।
बेटी पढ़ाओ का मतलब साफ़ है कि अगर पडेगी तो दो घर आगे बढ़ेगा। वैसे भी बेटी को पढ़ाना बहुत जरूरी है। क्योंकि बेटी को पढ़ाना बहुत लोग अभी भी जरूरी नहीं समझता है बेटा के तुलना में। इस नीच सोच से ऊपर उठकर बेटी को पढ़ाना जरूरी समझे।
सरकार भी इसके लिए कई योजनाएं शुरू की और और हम सबका जिम्मेदारी है की एक बेहतर समाज के लिए, एक बेहतर जिंदगी जीने के लिए एक पढ़ी-लिखी बेटी का होना बहुत जरूरी है।इसलिए बेटा बचाओ बेटी पढ़ाओ !
यह एक प्रश्न नहीं है। बल्कि एक सोच है और यह सोच एक शिक्षक का ही हो सकता है।
धन्यवाद:- प्रहलाद कुमार ( मधेपुरा )
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