सरस्वती पूजा में अश्लीलता का बढ़ रहा चलन:- रुकसाना आजमी
बसंत पंचमी के दिन हमसभी विद्या अर्जन करने वाले चाहे किसी भी धर्म के हों सभी मिलजुलकर मां शारदे की पूजा अर्चना ध्यान लगा कर करते हैं ।
विद्यालय हो या अन्य शैक्षणिक संस्थान हर जगह सरस्वती पूजा बिना किसी धार्मिक भेद भाव के आयोजित की जाती है। सभी छात्र-छात्राओं के संग शिक्षक व समाज के हर तबके के लोग उपस्थित होकर ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं, परन्तु आज के सरस्वती पूजा और पहले के सरस्वती पूजा में अंतर दिख रहा है। जो हमसभी के लिए चिंतनीय है।
सरस्वती पूजा हम लोग के समय में भी हुआ करता था और हम लोग बड़े जोर शोर से इस पूजा में भाग लेते थे । हमारे स्कूल में जब सरस्वती मां का स्थापन होता था, तब से लेकर उनके विसर्जन तक हम लोग खुद मौजूद रहते थे।
पहले दिन सरस्वती मां की पूजा होती थी। भक्ति गीत भी बजता था और हम लोग इसके दूसरे दिन रामायण पाठ करते थे । रामायण पाठ में हम चार लड़की और दो लड़के पंडित जी और प्रिंसिपल सर के साथ पूजा में बैठते थे ।
पंडित जी हमारे हाथों में गंगाजल फूल देते और हमें उन्हें अग्नि में अर्पण करने कहते हैं, इस तरह से हम लोग रामायण जाप करते और बीच-बीच में जय मां शारदे वीणा वाहिनी भी कहते रहते हैं ।
मैं मुस्लिम छात्रा हूं, मगर सरस्वती पूजा का भरपूर आनंद लेती क्योंकि मेरे सिलेबस में संस्कृत भी था। मैं संस्कृति पढ़ती थी। इसलिए मुझे रामायण उच्चारण करने में दिक्कत नहीं आती थी । बहुत शुद्धता के साथ हम लोग यह पूजा मनाते उस वक्त कोई अश्लील गाना भी नहीं बजता था ।
सर हम लोगों का लगन देखकर हम लोगों के लिए भोज भी करते, तब तीसरे दिन बड़े विधि विधान से विसर्जन होता था।
हम लोगों के जमाने का सरस्वती पूजा परन्तु आजकल सरस्वती पूजा विद्या की पूजा नहीं मनोरंजन हो गई है । इसमें बदलाव लाना जरूरी है, सरस्वती पूजा यानी विद्या की पूजा असल मकसद आजकल के विद्यार्थियों को बतलाना जरूरी है। यह डीजे वीजे पूजा में आने से रोकना है। विद्यार्थियों को असल सरस्वती पूजा का मतलब बतलाना है। जो सिर्फ हमारे शिक्षक ही कर सकते हैं।
मैंने इसमें अपनी प्रतिक्रिया इसलिए दी है क्योंकि मैं इस बात पर आजकल के सरस्वती पूजा पर सहमत नहीं हूं । सरस्वती पूजा आता था तो मानो जैसे हम लोग खुश हो जाते थे। फल प्रसाद काटेंगे पूजा करेंगे रामायण जाप करेंगे ।
सरस्वती पूजा पर मेरी प्रतिक्रिया स्वरूप यह आलेख से किसी के भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई मकसद नहीं है परन्तु युवाओं को सही राह दिखाना हम सभी देशवासियों का कर्तव्य है। किसी को ठेस पहुंचे तो मैं क्षमा चाहती हूं।।
✍️ रुकसाना आजमी
(सहरसा, बिहार)
नोट:- यह आलेख रचनाकार के खुद के विचार हैं अतः इस आलेख के सम्बंध में हर जवाबदेही रचनाकार की होगी।
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